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क्रिएट इन इंडिया: अगली सदी की गाथा और अर्थव्यवस्था पर प्रभुत्व के लिए भारत की कुंजी

वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ। पश्चिमी देशों ने नवाचार, बौद्धिक संपदा (आईपी) और तकनीकी प्रगति पर सदियों से अपना फोकस निरंतर बनाए रखने का लाभ उठाया है। अक्सर विनिर्माण और सेवा की तुलना में सृजन को महिमामंडित करके, इन देशों ने न केवल अपने आविष्कारों का आर्थिक लाभ प्राप्त किया है, बल्कि अपनी अवधारणाओं को वैश्विक स्तर पर निर्यात भी किया है। इन उपायों से वे आर्थिक महाशक्ति के रूप में स्थापित हुए हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका ने इंटरनेट, फार्मास्यूटिकल और एयरोस्पेस जैसी विघटनकारी तकनीकों के माध्यम से उद्योग जगत को बदल दिया। इसके परिणामस्वरूप, उनके उत्पादों और सेवाओं की वैश्विक मांग पैदा हुई। इसी तरह, यूरोपीय देशों ने इंफ्रास्ट्रक्चर (जैसे- रेलमार्गों के आर्थिक लाभ), ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग और लक्जरी सामान जैसे क्षेत्रों में नेतृत्व किया है, जहां नवाचार और बौद्धिक संपदा (आईपी) उनके वैश्विक प्रभुत्व के मूल में हैं।
इसके विपरीत, भारत और चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं ने ऐतिहासिक रूप से विनिर्माण और सेवाओं पर अपने विकास को टिकाया है। यह दोनों ही क्षेत्र मूल्य-संवर्धन के परिदृश्य में निचले स्थान पर हैं। यह दृष्टिकोण, औद्योगिकीकरण और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी होने के बावजूद, नवाचार या आईपी सृजन को प्राथमिकता नहीं देता है। वास्तव में बौद्धिक संपदा आर्थिक लाभ उठाने योग्य है। यही कारण है कि ये देश उन्नत प्रौद्योगिकियों के निर्माता बनने के बजाय उपभोक्ता बन गए हैं। हालांकि, चीन ने हाल के वर्षों में इस मॉडल को तोड़ दिया है। इसने नवाचार, बौद्धिक संपदा और तकनीकी प्लेटफार्मों में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। देश ने दूरसंचार, सोशल मीडिया और गेमिंग जैसे क्षेत्रों में अत्याधुनिक तकनीकों का विकास किया है। हुआवेई, टिकटोक और टेंसेंट जैसी वैश्विक दिग्गज कंपनियां इसके उदाहरण हैं। इन प्रयासों ने चीन की घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है। इतना ही नहीं, इसे एक मजबूत वैश्विक निर्यातक के रूप में स्थापित किया है, और इसे दुनिया भर के अमूल्य डेटा तक पहुंच प्रदान की है।
दूसरी ओर, भारत ने एक अलग तीव्र प्रगति का अनुसरण किया। उत्पादीकरण और प्रौद्योगिकी निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, भारत संपर्क केंद्रों, वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) और आईटी सेवाओं का पर्याय बन गया। इस स्थिति ने भारत को ष्दुनिया का बैकरूमष् का नाम दिया। यह एक ऐसी भूमिका है, जिसने आर्थिक रूप से लाभकारी होने के बावजूद, नवाचार और उच्च-मूल्य प्रौद्योगिकी निर्माण के मामले में देश को पिछड़ा बना दिया। जबकि भारत ने सेवाएं प्रदान करने में उत्कृष्टता हासिल की, इसने अक्सर अन्य देशों के नवाचार और उत्पाद विकास से जुड़े प्रयासों का नेतृत्व करने के बजाय उनका समर्थन किया।
हालांकि, पिछले दशक में भारत के वैश्विक रुख में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया है। भारत एक भू-राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरा है और इसने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी ताकत दिखाई है। कूटनीतिक रूप से, भारत ने वैश्विक मंच पर एक अधिक मुखर स्थिति अपनाई है, अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी स्वायत्तता बनाए रखते हुए प्रमुख शक्तियों के साथ रणनीतिक साझेदारी भी कायम की है। सॉफ्ट पावर के मामले में, मीडिया और मनोरंजन जैसे क्षेत्रों में अग्रणी होने से भारत को विकृत पश्चिमी कथानकों पर लगातार प्रतिक्रिया करने के बजाय अपने खुद के कथानकों को आकार देने की सुविधा मिलेगी।
अनुराग सक्सेना नीतिगत मामलों के विशेषज्ञ और ऑपएड स्तंभकार हैं। उनका लेखन वाशिंगटन पोस्ट, बीबीसी, वाइस, द डिप्लोमैट, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, संडे गार्जियन, स्पैन, ऑर्गनाइजर और पांचजन्य में छप चुका है। ये भारत सरकार की राष्ट्रीय पर्यटन सलाहकार परिषद के मनोनीत सदस्य हैं, सेंटर फॉर इन्सॉल्वेंसी एंड फाइनेंशियल लॉज के बोर्ड सदस्य हैं ई-गेमिंग फेडरेशन के सीईओ हैं।

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