वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/अजय कुमार
वाराणसी। वाराणसी में सिंथेटिक दूध का कारोबार बढ़ रहा है। ये दूध लोगों के सेहत पर असर डाल रहा है। जिले में 11 लाख लीटर दूध का उत्पादन हो रहा और खपत 22 लाख लीटर की है। दुग्ध उत्पादक संघ के मुताबिक इससे सिंथेटिक दूध और दुग्ध उत्पादों का बाजार चल निकला है। यह लोगों की सेहत के साथ जेब पर असर डाल रहा है। वहीं, मिलावट खोरों पर प्रशासन अंकुश नहीं लगा पा रहा है। बाजार में सिर्फ वाराणसी ही नहीं चुनार-मिर्जापुर, चंदौली, गाजीपुर से भी दूध आता है। दूध से खोआ, छेना, पनीर, दही, लस्सी मठ्ठा आदि भी तैयार किए जाते हैं। तरह-तरह की मिठाइयां बनती हैं। पनीर भी घरों के साथ-साथ वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को बेचा जाता है। शादी-समारोहों के अलावा विभिन्न आयोजनों में पनीर के तरह-तरह के व्यंजन बनाने का फैशन चल निकला है। चाय की दुकानों पर दूध की खपत जबरदस्त होती है।
दुग्ध शाला के अधिकारियों के अनुसार जिले में गाय की संख्या 3,25,679 और 2,56,441 मवेशी (भैंस) सहित 5,82,120 पशु हैं। इसमें 50 प्रतिशत दुधारू हैं। प्रति पशु चार लीटर के हिसाब से करीब 11,64,240 लीटर दूध का उत्पादन है। इसके अलावा चंदौली, जौनपुर, मिर्जापुर, सोनभद्र आदि जनपदों से रोजाना दो लाख लीटर दूध, पराग डेयरी से 25 हजार लीटर और अमूल डेयरी से 75 हजार लीटर दूध की आपूर्ति होती है। फिर भी वर्तमान में सात से आठ लाख लीटर दूध की कमी है। बाजार सूत्रों की मानें तो इस कमी की भरपाई के लिए सिंथेटिक व मिलावटी दूध का उपयोग किया जा रहा है।
बताते चलें कि वाराणसी की वर्तमान आबादी 46 लाख से अधिक है। इस आंकड़े के अनुसार 11 लाख से अधिक परिवार के लिए लगभग 15 लाख लीटर दूध चाहिए। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार प्रति व्यक्ति 3.50 एमएल दूध की आवश्यकता होती है। इसके अलावा मिठाई जिसमें खोवा, पनीर, मलाई, छेना, बनारसी कलाकंद, पेड़ा, रसगुल्ला, पनीर व चाय लस्सी, ठंडई, मट्ठा आदि में 6 से 7 लाख लीटर दूध की प्रतिदिन खपत होती है।
डिप्टी सीएमओ अमित कुमार सिंह का कहना है कि सिंथेटिक व मिलावटी दूध के उपयोग से जठरांत्र संबंधी जटिलताएं हो सकती हैं। इसका उच्च क्षारीय स्तर शरीर के ऊतकों को भी नुकसान पहुंचा सकता है और प्रोटीने को नष्ट करने साथ हार्ट, किडनी को प्रभावित कर सकता है। हृदय संबंधी समस्याएं भी आती हैं।
