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मदिरों में दूषित मिलावटी भोग के विरूद्ध विहिप ने विरोध प्रदर्षन कर ज्ञापन दिया

वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ। भगवान वेंकटेश के तिरुपति बालाजी मंदिर का संचालन आंध्र प्रदेश की सरकार के द्वारा गठित बोर्ड द्वारा किया जाता है। हिंदुओं की आस्था के केंद्र व पवित्रम तीर्थ में से एक भगवान श्री वेंकटेश के भोग प्रसाद में अपवित्र वस्तुओं की मिलावट की पुष्टि होने पर संपूर्ण हिंदू समाज आहत है। विश्व हिंदू परिषद अवध प्रांत व समस्त हिंदू समाज इस कुकृत्य की घोर निंदा करता है। विश्व हिंदू परिषद के केन्द्रीय संगठन द्वारा सोमवार को लखनऊ में विशाल धरना एवं प्रदर्शन व ज्ञापन देकर विरोध प्रकट किया गया।
विश्व हिंदू परिषद द्वारा उक्त के विरोध में बड़ी संख्या में स्त्री पुरूष अशोक सिंघल चैराहा बर्लिंगटन चैराहा लखनऊ पर एकत्र होकर जुलूस के रूप में चलते हुए अटल चैराहे (हजरतगंज) तक आए। जुलूस का नेतृत्व प्रांत संगठन मंत्री विजय प्रताप, प्रांत मंत्री देवेंद्र मिश्र, विभाग मंत्री योगेश एवं नृपेंद्र विक्रम सिंह, प्रांत प्रचार प्रमुख, विश्व हिंदू परिषद,अवध प्रांत ने किया।
संगठन मंत्री विजय प्रताप ने कहा कि तिरुपति बालाजी मंदिर में वितरित होने वाले महाप्रसाद की पवित्रता के संबंध में आस्थावान हिंदुओं की बहुत श्रद्धा होती है। दुर्भाग्य से इस महाप्रसाद को बनाने वाले घी में गाय व सूअर की चर्बी तथा मछली के तेल की मिलावट के अत्यंत दुखद और हृदय विदारक समाचार आ रहे हैं। पूरे देश का हिंदू समाज आक्रोशित है और हिंदुओं का क्रोध अलग-अलग रूप में प्रकट हो रहा है। इस पवित्र तीर्थ का संचालन आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित बोर्ड के द्वारा होता है। वहां केवल महाप्रसाद बनाने के मामले में ही हिंदू आस्थाओं के साथ खिलवाड़ नहीं किया गया अपितु हिंदुओं के द्वारा अत्यंत श्रद्धा भाव से अर्पित की गई देव राशि (चढ़ावा) के सरकारी अधिकारियों व राजनेताओं द्वारा दुरुपयोग के भी कष्टकारी समाचार मिलते रहते हैं। कई बार तो हिंदुओं के धर्म पर आघात कर हिंदुओं का धर्मांतरण करने वाली संस्थाओं को इस पवित्र राशि से अनुदान देने के समाचार भी मिलते रहे हैं। कई अन्य राज्य सरकारें भी मंदिरों की संपत्ति व आय का निरंतर दुरुपयोग करती रहती हैं तथा उनका उपयोग गैर हिंदू और हिंदू विरोधी कार्यो में करती रही है।
विजय प्रताप ने आगे कहा कि हमारे देश में संविधान के सर्वोपरि होने की दुहाई बार-बार दी जाती है परंतु दुर्भाग्य से हिंदुओं की आस्थाओं के केंद्र मंदिरों पर विभिन्न सरकारें अपना नियंत्रण स्थापित कर हिंदुओं की भावनाओं के साथ सबसे घृणित धोखाधड़ी संविधान की आड़ में ही कर रही हैं। जो सरकारें संविधान की रक्षा के लिए निर्माण की जाती हैं वे ही संविधान की आत्मा की धज्जियां उड़ा रही है। अपने निहित स्वार्थ के कारण मंदिरों का अधिग्रहण कर वे संविधान की धारा 12, 25 व 26 का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर रही हैं।
क्या स्वतंत्रता प्राप्ति के 77 वर्ष बाद भी हिंदुओं को अपने मंदिरों का संचालन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती? अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक संस्थान चलाने की अनुमति है परंतु हिंदू को यह संविधान सम्मत अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा? यह सर्व विदित है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिरों को लूटा और नष्ट किया था। अंग्रेजों ने चतुराई पूर्वक उन पर नियंत्रण स्थापित करके उन्हें निरंतर लूटने की प्रक्रिया स्थापित कर दी। स्वतंत्रता के 77 वर्ष बाद भी भारत की सरकारें इस औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त है और हिंदुओं के मंदिरों पर नियंत्रण स्थापित कर लूट रही है।
तिरुपति बालाजी व अन्य स्थानों पर की जा रही अनियमितताओं के कारण अब हिंदू समाज का यह विश्वास हो गया है कि अपने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराए बिना उनकी पवित्रता को पुनर्स्थापित नहीं किया जा सकता। यह स्थापित मान्यता है कि हिंदू मंदिरों की संपत्ति व आय का उपयोग मंदिरों के विकास व हिंदुओं के धार्मिक कार्यों के लिए ही होना चाहिए। वास्तविकता यह है कि मंदिरों की आय व संपत्ति की खुली लूट अधिकारियों व राजनेताओं के द्वारा तो की ही जाती हैं कई बार उनके चहेते हिंदू विरोधियों द्वारा भी की जाती है।

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