वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ। बसपा मुखिया मायावती ने आज यहाँ लखनऊ में एक प्रेस कान्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए कहा कि मा0 सुप्रीम कोर्ट के 7- न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ द्वारा अभी हाल ही में पहली अगस्त 2024 को देश में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के सन्दर्भ में जो एक अति महत्वपूर्ण निर्णय दिया गया है, जिसमें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों को पुनः उप-वर्गीकृत ;ैनइ-बसंेेपपिबंजपवद) किए जाने को मान्यता प्रदान की गई है, जिसको लेकर और भी बहुत सी बातें कहीं गई है उनसे हमारी पार्टी कतई भी सहमत नहीं है और इस सम्बन्ध में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में पारित इस आदेश के अनुसार अब राज्य सरकारें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति सूची के भीतर आरक्षण के लिए उप-वर्गीकरण अर्थात् नई सूची बना सकेंगी, जिससे फिर अनेकों समस्यायें उत्पन्न होंगी ।
मायावती ने आगे कहा कि अब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहली अगस्त 2024 के इस निर्णय से 20 वर्ष पूर्व दिया गया निर्णय जो सन् 2004 में पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ द्वारा ई.वी. चिन्नैया बनाम आँध्र प्रदेश राज्य में दिया गया था, को पलट दिया है जिसमें अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के भीतर किए जाने वाले वर्गीकरण को मान्यता देने से इनकार कर दिया गया था और यह भी कहा गया था कि अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के भीतर उप-वर्गीकरण नही किया जा सकता है क्योंकि वे एक ही समरूप अर्थात् समान वर्ग में आते हैं। मा0 सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2004 के अपने निर्णय में यह भी कहा था कि चूंकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लोगों ने जो अत्याचार सहे हैं वह एक वर्ग और एक समूह के रूप में सहे हैं तथा यह एक बराबर का वर्ग है जिसके भीतर किसी भी प्रकार का वर्गीकरण करना उचित नहीं होगा । अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के भीतर किसी भी प्रकार का उप वर्गीकरण भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत होगा । माननीय कोर्ट ने अपने वर्ष 2004 के इस निर्णय द्वारा समानता के अधिकार का उल्लंघन करने के कारण आँध्र प्रदेश सरकार द्वारा पारित आँध्र प्रदेश अनुसूचित जाति ( आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम 2000 को भी रद्द कर दिया था। यह वर्गीकरण इन जातियों के भीतर अलग-अलग व्यवहार करके समानता के अधिकार का उल्लंघन करेगा।
अब मा0 सुप्रीम कोर्ट के सात – जजों की पीठ ने पहली अगस्त 2024 के निर्णय से सन् 2004 के निर्णय को पलट दिया है, जबकि इस निर्णय से अनेकों मतभेद उत्पन्न होंगे। इस निर्णय के बाद केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच भी मतभेद की स्थिति उत्पन्न होगी, क्योंकि अभी तक केवल संसद के पास किसी भी जाति को या जनजाति को अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति में सम्मिलित करने या बाहर करने की पावर (शक्ति) है जिसे माननीय राष्ट्रपति द्वारा अपने आदेशों द्वारा क्रियान्वित किया जाता है । और जिसे बदलने का किसी भी राज्य सरकार को अधिकार नहीं है । परन्तु अब जहां जो पार्टी सत्ता में होगी वह अपनी-अपनी राजनीति के हिसाब से अदलती व बदलती रहेगी जिसके साथ-साथ राज्य सरकारें अपने – अपने वोट बैंक के लिए अपनी मनचाही जातियों को आरक्षण का अनुचित लाभ देने का प्रयास करेंगी। इस प्रकार से इस आदेश से ऐसी अनेकों समस्यायें उत्पन्न होगी जिसके कारण एससी व एसटी को मिल रहा आरक्षण ही समाप्त हो जायेगा और फिर इसका नतीजा यह होगा कि अनुसूचित व जनजाति वर्ग अन्त में आरक्षण से वंचित रह जाएगा और उनके हिस्से का आरक्षण भी अन्त में किसी ना किसी रूप में सामान्य वर्ग को ही दे दिया जायेगा । माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने पहली अगस्त 2024 के इस निर्णय में इस बिन्दु पर भी पर्याप्त विचार व्यक्त नहीं किए गए हैं कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के किन लोगों को क्रीमी लेयर की श्रेणी में रखा जाएगा और यह तय करने का क्या मानक होगा कि किन लोगों को अब आरक्षण की आवश्यकता नहीं है तथा इस कार्य के लिए अब राज्य सरकारों को राजनीति करने का पूरा मौका मिल जायेगा ।
माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद यदि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर उप-वर्गीकरण किया जाता है तो वर्तमान में लागू आरक्षण के अनुसार सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अनेकों पद रिक्त रह जायेंगे, क्योंकि जिन सीमित वर्ग की उपजातियों को
आरक्षण दिया जायेगा उसमें रिक्त पद के सापेक्ष उतने अभ्यार्थी उपलब्ध नहीं हो पायेंगे और ऐसी स्थिति में यह बची हुई रिक्तियाँ अन्त में सामान्य वर्ग के हिस्से में चली जायेंगी जिससे समूचे दलित समाज के पिछड़े हुये लोगों को काफी नुकसान होगा और उनमें असंतोष की भावना उत्पन्न होगी ।
इसके साथ-साथ, राज्य सरकारों को यह अधिकार होगा कि वह संविधान के अनुच्छेद 341 व 342 के अन्तर्गत माननीय महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा घोषित एससी व एसटी जातियों के समूह का उप-वर्गीकरण करके आरक्षण का लाभ उनमें से कुछ जातियों को दे सकती हैं। और ऐसा करते समय एससी व एसटी के समूह में बची हुई जातियों को उससे वंचित रख सकती हैं क्योंकि राज्य सरकार कि निगाह में उन जातियों को अब आरक्षण की आवश्यकता नहीं है चूंकि उन जातियों में से कुछ लोग सामाजिक तौर पर एससी व एसटी की अन्य जातियों से बेहतर स्तर पर हैं । माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस उप-वर्गीकरण के पक्ष में जोरदार दलील रखते समय बीजेपी द्वारा केन्द्र शासित सरकार के एटार्नी जनरल, सॉलिस्टर जनरल, पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार के महाधिवक्ता हरियाणा एवं चण्डीगढ़ की ओर से अधिवक्ताओं द्वारा यह महात्वपूर्ण तथ्य नहीं रखा गया कि वर्गीकरण के तहत जिन जातियों को लाभ से वंचित कर दिया जायेगा, उन जातियों में अभी भी लाखों व्यक्ति ऐसे होंगे जिनको आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है और अब उन्हें अनुच्छेद 341 एवं 342 के तहत एससी व एसटी वर्ग के समूह में होते हुए भी हमेशा के लिए आरक्षण से वंचित रहना पड़ेगा जो कि किसी प्रकार से भी न्यायसंगत व उचित नहीं होगा तथा पूर्ण रूप से असंवैधानिक भी होगा तथा यह सभी उप-वर्गीकरण वाली जातियाँ आपस में ही कोर्ट कचहरी अदालतों में बरसों तक लड़ते रहेंगे और अन्त में यह सभी लोग फिर वंचित रह जायेंगे ।
माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सुनवाई के दौरान समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ राज्यसभा सांसद जो कि वरिष्ठ अधिवक्ता भी हैं तथा इनके साथ-साथ बीजेपी ने केन्द्र में अपनी सरकार की ओर से माननीय एटार्नी जनरलव सॉलिस्टर जनरल व कुछ राज्य सरकारों के वकीलों द्वारा उसमें भी खासकर आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार की ओर से पंजाब के एडवोकेट जनरल, हरियाणा एवं चण्डीगढ़ में बीजेपी की ओर से उनके वकीलों द्वारा उप-वर्गीकरण के पक्ष में तथ्यों को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करते हुए बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर द्वारा संविधान सभा में लम्बे विचार विमर्श के बाद बनाए गए आरक्षण के सिद्धांतों के साथ छेड़छाड़ करने का कार्य किया गया है जोकि आरक्षण को पूरी तरह समाप्त करने की मानसिकता के साथ उठाया गया यह एक गंभीर कदम है। माननीय सुप्रीम कोर्ट के पहली अगस्त 2024 के दिये गये निर्णय के बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के भीतर आपसी द्वेष की भावना बढ़ेगी।
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