वेब वार्ता (न्यूज़ एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
नई दिल्ली 13 सितम्बर। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 20 वर्षों में एक बार मिलने वाली जी20 की इंडिया यानी भारत की अध्यक्षता ऐतिहासिक मानी जाएगी। इस अध्यक्षता ने एक ऐसी अमिट छाप छोड़ी है जिसकी अनदेखी करना घरेलू और विदेशी आलोचकों के लिए भी कठिन होगा। भारत की भौतिक, सांस्कृतिक, सभ्यतागत भव्यता और इसकी आर्थिक, वैज्ञानिक व तकनीकी प्रगति एवं गतिशीलता पूरी तरह से परिलक्षित हुई। भारत की पूर्व राजदूत और संयुक्त राष्ट्र की सहायक महासचिव लक्ष्मी पुरी ने जी20 में भारत की उपयोगिता पर कह रही थी।
उन्होनें आगे कहा कि भारत की कूटनीतिक व सर्वसम्मति निर्माण कौशल और सबसे अधिक आबादी वाले एवं युवाओं की संख्या के मामले में सबसे समृद्ध तथा सबसे पुराने, सबसे बड़े एवं सबसे अधिक विविधतापूर्ण लोकतांत्रिक देश की हैसियत ने इस ‘जनता के जी20’ में इसकी अध्यक्षता को एक विशेष गरिमा प्रदान की। प्रधानमंत्री मोदी की सरकार की असाधारण प्रतिबद्धता ने भारत को ‘विश्वगुरु’ और ‘विश्वामित्र’ के रूप में वैश्विक मंच पर स्थापित कर दिया। भारत की यह छवि उच्चतम स्तर की भागीदारी और एक सार्थक दिल्ली घोषणा में दिखाई दी।
विकासशील देशों के इस सबसे शक्तिशाली समूह को आगे बढ़ाने के जिम्मेदारियों के प्रति प्रधानमंत्री मोदी का समावेशी एवं मानव-केन्द्रित दृष्टिकोण जी20 की भारत की सफल अध्यक्षता की पहचान बन गया। एक अभिजात्य बहुपक्षीय मंच के तौर पर, जी20 का जन्म 2008 के वैश्विक संकट के दौरान हुआ था। इसने वास्तविक सार्वभौमिक बहुपक्षीय मंच से वैश्विक आर्थिक एवं वित्तीय शासन के एजेंडे को अपहृत कर लेने की आलोचना को सहते हुए इस संकट से उबरने में काफी हद तक मदद की। पिछले कुछ वर्षों में, जी20 ने अपनी उपयोगिता साबित की है। लेकिन, अब इसे अब तक के गंभीरतम संकटों से निपटना है। अतिव्यापी और आपस में एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हुए ये संकट एक साथ उभरे हैं। जी20 ने वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन के शुभारंभ के लिए भी संदर्भ प्रदान किया।
