वेब वार्ता (न्यूज़ एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ 31 अगस्त। आज कल कुछ मीठा हो जाए के नाम पर या जन्मदिन, शादी विवाह हो या कोई भी खुषी का पल हो तो विदेषी व्यंजन चाॅकलेट और कैडबरी, टाफी, जेम देने का फैषन काफी तेजी से बढ़ गया है। बड़े बड़े विज्ञापनों में इन्हे विदेषी व्यंजनो को देने के लिए भी प्रलोभित किया जाता है कि इन्हें देने से देने वाले का स्टेटस माडर्न और अमीराना दिखाई देगा। अब यह व्यंजन माडर्न सोसाइटी का हिस्सा बन चुके है।
स्वर्णकार समाज के अग्रणी संगठन राष्ट्रीय स्वर्णकार मंच के महासचिव अजय कुमार स्वर्णकार ने समाज से अपील की है वो भारतीय मिठाइयां जैसे बूंदी, खीर, बर्फी, घेवर, चूरमा, रबड़ी, रेबड़ी, फीणी, जलेबी, आम रस, कलाकंद, रसगुल्ला, रसमलाई, नानखटाई, मावा बर्फी, पूरण पोली, मगज पाक, मोहन भोग, मोहन थाल, खजूर पाक, मीठी लस्सी, गोल पापड़ी, बेसन लड्डू, शक्कर पारा, मक्खन बड़ा, काजू कतली, सोहन हलवा, दूध का शर्बत, गुलाब जामुन, गोंद के लडडू, नारियल बर्फी, तिलगुड़ लडडू, आगरा का पेठा, गाजर का हलवा, 50 तरह के पेडे, 50 तरह की गजक, 20 तरह का हलवा, 20 तरह के श्रीखंड आदि भारतीय मिठाइयां पौराणिक काल से ही हमारे खुषियों में शामिल रही है।
लेकिन पिछले कुछ वर्षों से हम इन मिठाइयों के स्थान पर चाकलेट, कैडबरी, टाफी, जेम आदि का प्रयोग करना प्रारम्भ कर चुके है। जबकि यह बासी भी होते है और नुकसानदायक भी।
अतः सभी भारतीय परिवारों से निवेदन है कि पुरानी संस्कृति को अपनाते हुये देषी मिठाइयों का बढ़ावा दे और विदेषी चाकलेट, कैडबरी, टाफी, जेम का बहिष्कार करें।
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