वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ 19 अक्टूबर। लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी की जयंती पर जेपीएनआईसी की वर्तमान सरकार द्वारा की जा रही दुर्दशा से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव आहत हैं। 11 अक्टूबर 2023 को जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र (जेपीएनआईसी) स्थित जेपी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कार्यक्रम पूर्व निर्धारित था जिसमें अवरोध डालते हुए शासन-प्रशासन ने गेट पर ताला लगा दिया। समाजवादी विचारधारा से निकले अखिलेश यादव ने इस तानाशाही प्रतिबन्ध को मानने से इनकार कर दिया। अहिंसात्मक प्रतिरोध में उन्होंने गेट लांघकर परिसर में जाकर जेपी जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इस घटना ने 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हजारीबाग जेल से ऊंची दीवार फांदकर बाहर आए जयप्रकाश नारायण जी की याद दिला दी।
स्मरणीय है 8 अगस्त सन् 1942 में गांधीजी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो प्रस्ताव पर बोलते हुए देशवासियों से ‘करो या मरो‘ का आह्वान किया था। गांधीजी की 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तारी के बाद समाजवादी नेताओं जयप्रकाश नारायण, डॉ0 राममनोहर लोहिया, ऊषा मेहता, अरूणा आसिफ अली आदि ने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया था। जेपी लोहिया की इसमें प्रमुख भूमिका थी।
जेपीएनआईसी के घटनाक्रम ने निर्विवाद रूप से यह स्थापित कर दिया है कि जनता के नेता अखिलेश यादव समाजवादी आंदोलन की विरासत को नष्ट करने वाले किसी भी षड्यंत्र को सफल नहीं होने देंगे। समाजवादी विचारधारा की पृष्ठभूमि में स्वतंत्रता संग्राम है। समाजवादियों ने सदैव स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों और नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया है। अखिलेश यादव देश में सत्ताधारी भाजपा की अधिनायकशाही के खिलाफ लगातार आवाज बुलंद कर रहे हैं। राजनीति में उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता जनता है। वंचित एवं अधिकारविहीन वर्गों को प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए उन्होंने सामाजिक न्याय का रास्ता चुना है।
स्मरणीय है, अखिलेश यादव के सुझाव पर सोशलिस्ट नेता जार्ज फर्नांडीज की उपस्थिति में जेपीएनआईसी की नींव पड़ी थी जिससे जेपी और आपातकाल के दौरान हुए आंदोलन से आम जनता अवगत हो सके लेकिन किन्हीं कारणों से लोकनायक के जीवन पर आधारित महत्वपूर्ण भवन की कल्पना पूरी तरह साकार नहीं हो सकी। सन् 2012 में एक बार फिर समाजवादी सरकार बनने पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जेपीएनआईसी के सपनों को साकार किया। यह विश्वस्तरीय संग्रहालय जय प्रकाश नारायण जी की जीवन यात्रा पर आधारित है। जिसमें स्वतंत्रता आंदोलन एवं आपातकाल के दौरान लोकतांत्रिक संघर्ष का आडियोध्वीडियो स्वरूप म्यूजियम भी शामिल है।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अनेक सार्वजनिक मंचों से यह बात दुहराते रहे हैं कि निर्वाचित सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे अपने गौरवशाली इतिहास की समूची यात्रा से नई पीढ़ी को भी परिचित कराएं। आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अनगिनत स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवन यात्रा, कृतज्ञता भाव से जानी जा सके। जेपीएनआईसी समाजवादी आंदोलन का संग्रहालय है। इसमें एक समृद्ध पुस्तकालय, जेपी के नेतृत्व में हुई क्रांति पर आधारित वृत्तचित्र जैसे अन्य प्रसंगों से जुड़ी कलाकृतियां शामिल हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जहां एक ओर लोकतंत्र-संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं वहीं दूसरी ओर समाजवादी विचारधारा की विरासत को सहेजने के लिए संघर्षरत हैं। बीते दो दशक से अधिक के राजनैतिक जीवन में उनका प्रमुख जोर नई पीढ़ी के लिए बेहतर भविष्य निर्माण की दिशा में प्रयास हैं। सत्तर का दशक संविधान प्रदत्त अधिकारों के हनन का था जिसके खिलाफ छात्रों- नौजवानों ने जेपी की अगुवाई में लोकतंत्र बहाली के सपनें को साकार किया। ठीक उसी प्रकार की परिस्थितियां आज भी देश के सामने खड़ी हो गईं हैं। नागरिक अधिकारों को समाप्त करने का षडयंत्रकारी प्रयास जारी है। संविधान संकट में है। आरक्षण समाप्त किया जा रहा है। भारत की विविधता पर खतरा मंड़रा रहा है। ऐसे में अखिलेश यादव संवैधानिक अधिकारों को सही रूप में दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज को उनकी आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी दिलाने के लिए सड़क से सदन तक आंदोलनरत रहे हैं। जातीय जनगणना की मांग संसाधनों पर अधिकार से वंचित रह गए वर्गों के न्याय के लिए ही है।
जेपीएनआईसी में गेट लांघते हुए जयप्रकाश नारायण की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर अखिलेश यादव ने स्पष्ट कर दिया है कि समाजवादियों द्वारा बताए गए सिविल नाफरमानी का रास्ता खुला हुआ है। समाजवादी विचारधारा के नायकों का सम्मान और समाजवादी विरासत को बचाए रखने के लिए अखिलेश यादव किसी भी स्तर पर समझौता नहीं करेंगे। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह एक सकारात्मक दिशा है। (राजेन्द्र चैधरी- पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं राष्ट्रीय सचिव समाजवादी पार्टी)
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