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शादी विवाह की अधिकतम उम्र 25 ही रखे तो बेहतर होगा

वेबवार्ता (न्यूज़ एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
आजकल के बदलते परिवेश में जहाँ बच्चो कि शादी कि उम्र २५ वर्ष से शुरू हो रही है और ताज्जुब है कि इसमें लड़का और लड़की दोनों के माँ बाप की रजामंदी है। पहले ख़ानदान विवाह के आधार हुआ करते थे, अब प्रोफ़ेशन ही विवाह का आधार हो गया है, इसलिए रिश्ते नाते भी दूर होते जा रहे है। लेकिन इस तरह के विवाह के कुछ ही समय बाद कई पारिवारिक समस्याएं उत्पन्न हो रही है। जबकि विज्ञान भी कहता है की अधिकांशतः अधिक उम्र के विवाह शादी हेतु उनुप्युक्त होते है।
कई परिवारों से बात करने के बाद और उन समस्याओं को देखते हुए अभिभावकों की कई विचित्र राय सामने आयी है, देखने व पढ़ने में अजीब लेकिन कहीं न कहीं तथ्यों से ज़रूर जुड़ा है।
जैसे :-
1. अपने बेटे और पुत्र वधु को विवाह उपरांत अपने साथ रहने के लिए उत्साहित न करें, उत्तम है उन्हें अलग, यहां तक कि किराये के मकान में भी रहने को कहें, अलग घर ढूढना उनकी परेशानी है। आपका और बच्चों के घरों की अधिक दूरी आप के सम्बंधों को बेहतर बनायेगी।

2. अपनी पुत्र वधु से अपने पुत्र की पत्नी कि तरह व्यवहार करें, न की अपनी बेटी की तरह, आप मित्रवत् हो सकते हैं। आप का पुत्र सदैव आप से छोटा रहेगा, किन्तु उस की पत्नी नहीं, अगर एक बार भी उसे डांट देंगें तो वह सदैव याद रखेगी।
वास्तविकता में केवल उस की माँ ही उसे डाँटने या सुधारने का एकाधिकार रखती है आप नहीं।

3. आपकी पुत्रवधु की कोई भी आदत या उस का चरित्र किसी भी अवस्था में आप की नहीं, आप के पुत्र या पुत्रवधु के माँ बाप की परेशानी है, क्योंकि पुत्रवधु के माँ बाप का हस्तक्षेप बराबर बना रहता है।

4. ईकट्ठे रहते हुए भी अपनी अपनी जिम्मेदारियाँ स्पष्ट रखें, उनके कपड़े न धोयें, खाना न पकायें या आया का काम न करें, जब तक पुत्रवधू उसके लिए आप से प्रार्थना न करे, और अगर आप ये करने में सक्षम हैं, एवम् प्रति उपकार भी नहीं चाहते तो। बिशेषतः अपने पुत्र की परेशानियों को अपनी परेशानियां न बनाए,
उसे स्वयं हल करने दें।

5. जब वह लड़ रहे हों, गूंगे एवम् बहरे बने रहें। यह स्वाभाविक है कि बड़ी उमर के पति पत्नी अपने झगड़े में अविभावकों का हस्तक्षेप नहीं चाहते।

6. आपके पोती पोते केवल आप के पुत्र एवम् पुत्रवधू के हैं, वह उन्हें जैसा बनाना चाहते हैं बनाने दें, अच्छाई या बुराई के लिए वह स्वयं जिम्मेदार होंगे।

7. आप की पुत्रवधु को आपका सम्मान या सेवा करना जरुरी नहीं है, यह आप के बेटे का दायित्व है। आप को अपने बेटे को ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वह एक अच्छा ईन्सान बने, जिस से आपके और आप की पुत्रवधु के सम्बंध अच्छे रहें।

8. अपनी रिटायरमेंट को सूनियोजित करें, अपने बच्चों से उस में ज्यादा सहयोग की उम्मीद न करें। आप बहुत से पडाव अपनी जीवन यात्रा में तय कर चुके हैं पर अभी भी जीवन यात्रा में बहुत कुछ सीखना है।

9. यह आप के हित में है आप अपने रिटायरमेंट जिंदगी का आनन्द लें, बेहतर है अगर आप अपनी मृत्यु से पूर्व उसका भरपूर आनन्द लें जो आप ने जीवन पर्यंत मेहनत करके बचाया है। अपनी कमाई को अपने लिए महत्त्वहीन न होने दें।

10. ध्यान रखें आपके नाती पोते आपके परिवार का हिस्सा नहीं हैं, वह अपने अभिभावकों की धरोहर हैं।

कृपया ध्यान् दें……… यह संदेश सिर्फ़ आप के लिए ही नहीं है, इसे मित्रों, अभिभावकों, ससुरालियों, चाचा चाची एवम् ताऊ ताई, पति एवम् पत्नी सभी शान्ति एवम् समृद्धि के लिए है, क्योंकि यह सब हमारे आपने चारों तरफ हो रहा है, जिसे हम देख कर भी अनदेखा कर दे रहे है कि हम उन सबसे बेहतर है, ईश्वर करे ऐसा ही हो। कई परिवार इससे असहमत भी हो सकते है, इसलिए बच्चो की शादी विवाह की अधिकतम उम्र 25 ही रखे तो बेहतर होगा।
नोट :- यह सन्देश उन अपवाद परिवार पर लागू नहीं होता जो वास्तव में इन समस्याओं से अछूते है।
                                                                                                                                                                        ( शेष अगले अंक में)

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