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उथले जलभृतों का पुनर्भरण: भारत के शहरी जल संकट के समाधान का भाग ?

– भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है, जो अमेरिका और चीन में होने वाली जल की कुल खपत से भी अधिक मात्रा में जल का उपभोग करता है। विशेषकर, शहरी क्षेत्र अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूजल पर उत्तरोत्तर रूप से निर्भर होते जा रहे हैं – एस. विश्वनाथ और इशलीन कौ
वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
नई दिल्ली। भारत में, भूजल शहरों में जल की मांग को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अपेक्षाकृत कम गहराई पर पाए जाने वाले ये जलभृत सदियों से जल के महत्वपूर्ण स्रोत रहे हैं। ऐसे समय में जब लंबी दूरी तक पानी पहुंचाना कल्पना से परे था, तब समुदायों ने अपनी पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए उथले जलभृतों का रुख किया। सुगम्य गहराई पर पाए जाने वाले ये जलभृत बढ़ती आबादी को किफायती और भरोसेमंद जल आपूर्ति प्रदान किया करते हैं। आज भी मौजूद ये कुएं और बावडियां, उस दौर की याद की दिलाते हैं, जब उथले जलभृतों का पुनर्भरण करने के लिए वर्षा जल का उपयोग करके पानी की किल्लत दूर की जाती थी।
यद्यपि जैसे-जैसे आधुनिक शहरों का विकास होता गया, वैसे-वैसे इस परिदृश्य में सर्वत्र मौजूद रहने वाले ये साधारण से कुएं गायब होने लगे। अब इन कुओं की जगह काफी हद तक गहरे बोरवेल ले चुके हैं, जो खतरनाक गहराई पर भूजल भंडार का दोहन करते हैं। भारत, दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है जो अमेरिका और चीन में होने वाली जल की कुल खपत से भी अधिक मात्रा में जल का उपभोग करता है। विशेष रूप से, शहरी क्षेत्रों में, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूजल पर निर्भरता निरंतर बढ़ती जा रही है, जिसके कारण उथले जलभृतों में काफी कमी आई है, और बहुत लंबे समय तक, शहरी नियोजन में भूजल प्रबंधन को दरकिनार किया जाता रहा है।
यद्यपि हाल ही में अप्रत्याशित वर्षा, अचानक बाढ़ और शहरी जल संकट- जैसी जलवायु चुनौतियों ने भूजल प्रबंधन के प्रति फिर से दिलचस्पी उत्पन्न की है। समाधान के तौर पर, वर्षा जल संचयन और शहरी जल निकायों के पुनर्भरण की परियोजनाएं उत्तरोत्तर रूप से इन प्राकृतिक भूमिगत जलाशयों का रुख कर रही हैं। अब अतिरिक्त वर्षा जल को संग्रहित करने और बाढ़ में कमी लाने की क्षमता के लिए जलभृतों का अध्ययन किया जा रहा है।
वर्ष 2021 में अमृत 2.0 की शुरुआत ने जल प्रबंधन में आमूल-चूल बदलाव किया, जिसमें आखिरकार भूजल को ‘शहरी’ स्तर पर प्राथमिकता दी गई। मिशन ने न केवल भूजल पर निर्भर रहने बल्कि सक्रिय रूप से इसका प्रबंधन और संरक्षण करने की शहरों की आवश्यकता को पहचाना।
इस पहल ने स्थानीय जलभृत स्थितियों के अनुरूप पुनर्भरण संरचनाओं के लिए 12 विशिष्ट दृष्टिकोणों और डिजाइनों को तैयार करने का मार्ग प्रशस्त किया है। इनमें धनबाद, हैदराबाद और बेंगलुरु में मौजूदा कुओं और बावड़ियों के पुनर्भरण से लेकर पुणे में उच्च पुनर्भरण क्षमता वाले क्षेत्रों का जलग्रहण उपचार तक शामिल है। ग्वालियर और राजकोट जैसे शहरों ने जलभृत प्रणालियों और भूजल गहराई का विस्तृत मानचित्रण किया है और शहर के स्तर पर पुनर्भरण संरचनाओं की एक सूची तैयार की है, जिससे भूजल प्रबंधन के लिए सुविचारित निर्णय लेने सुगम होता है।
इस परियोजना ने स्थानीय समुदायों की जल संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन पुनर्भरण संरचनाओं के सतत उपयोग को प्रदर्शित करने की दिशा में भी आशाजनक परिणाम दर्शाए हैं। बेंगलुरु के कांतीरवा नगर में, परियोजना के तहत बनाया गया पुनरूसंयोजित किया गया एक कुआं अब लगभग 500 घरों को पानी की आपूर्ति कर रहा है, जिसमें से गैर-पेय उपयोग के लिए प्रतिदिन एक लाख लीटर पानी निकाला जा रहा है।

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