Breaking News

पत्रकारों के लिए पेंशन बुढ़ापे की लाठी से कम नहीं: डॉ. सुयश मिश्रा

वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ। देश में मीडिया को लोकतंत्र का चैथा स्तंभ माना जाता है। जिस प्रकार एक वृक्ष की जड़ें जमीन में रहती हैं, उसी प्रकार पत्रकारों का संघर्ष और उनके निजी जीवन की चुनौतियां अक्सर पर्दे के पीछे छिपी रहती हैं। पत्रकारिता का यह पेशा बाहरी दुनिया के लिए भले ही आकर्षक और रोमांचकारी हो, लेकिन हकीकत में यह जिम्मेदारी, जोखिम, और निरंतर चुनौतियों से भरा होता है। जनहित और सत्य के प्रति निष्ठावान कलमकारों का योगदान समाज में अद्वितीय है। जरा सोचिए दो-दो, तीन-तीन दशक तक पत्रकारिता में अपना बहुमूल्य योगदान देने वाले, अपना आधा जीवन इस पेशे को समर्पित करने वाले हमारे अपने आज जब आयु से वृद्ध हैं, नौकरी कर पाने में असमर्थ हैं तो उनका जीवन कैसा होगा? ऐसे पत्रकारों के लिए पेंशन बुढ़ापे की लाठी से कम नहीं है।

लेखक: डॉ. सुयश मिश्रा (पत्रकार, शोधार्थी),

सदस्य, मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति।

Check Also

भारत के पोषण लाभ और प्रगति को और मजबूत करने और निरंतरता बनाए रखने की दिशा की ओर

वेबवार्ता (न्यूज़ एजेंसी)/अजय कुमार वर्मा नई दिल्ली। समग्र कल्याण के लिए अच्छा पोषण बेहद जरुरी …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Live Updates COVID-19 CASES
  • World N/A
    World
    Confirmed: N/A
    Active: N/A
    Recovered: N/A
    Death: N/A
  • World N/A
    World
    Confirmed: N/A
    Active: N/A
    Recovered: N/A
    Death: N/A