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पुष्प कचरा बना वरदान: उतर प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण और रोजगार सृजन

– प्रयागराज, आगरा और नोएडा आदि शहरों में कूड़े से हो रही कमाई
– कानपुर में फूलों से बदलाव, कचरे से कमाई की अनोखी पहल
वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ। “जब कोई व्यक्ति फूलों को नदी में फेंकता है, तो वो सोचता है, ‘कुछ फूलों से क्या फर्क पड़ता है?’ लेकिन हम एक अरब से ज्यादा लोगों का देश हैं, तो सोचिए इसका असर कितना बड़ा हो सकता है।” यह कहना है नचिकेत कुंतला का, जो च्ीववस.बव स्टार्टअप के रिसर्च और डेवलपमेंट प्रमुख हैं। यह स्टार्टअप फूलों के कचरे को रिसाइकल करके नए-नए उत्पाद बनाता है। अक्सर पूजा स्थलों से इकट्ठा किए गए फूल, जो बायोडिग्रेडेबल होते हैं, या तो कचरे में या नदियों में बहा दिए जाते हैं। इससे पानी और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, गंगा नदी अकेले हर साल 80 लाख टन से ज्यादा फूलों का कचरा अपने में समेट लेती है। लेकिन स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के तहत, कई भारतीय शहर इस समस्या का समाधान ढूंढ रहे हैं। स्टार्टअप्स और सामाजिक उद्यमी मिलकर इन फूलों को रिसाइकल कर रहे हैं और इनसे जैविक खाद, साबुन, मोमबत्तियाँ और धूपबत्ती जैसे उपयोगी उत्पाद बना रहे हैं। कानपुर का च्ीववस.बव इसी काम में लगा हुआ है। यह स्टार्टअप रोज मंदिरों से करीब 21 टन फूलों का कचरा इकट्ठा करता है, जिसमें अयोध्या, वाराणसी, बोधगया, कानपुर और बद्रीनाथ जैसे शहर शामिल हैं। ये फूल फिर धूपबत्ती, धूप कोन और हवन कप जैसे प्रोडक्ट्स में बदल दिए जाते हैं। इस काम में लगी महिलाएं सुरक्षित माहौल में काम करती हैं और उन्हें वेतन, भविष्य निधि, और स्वास्थ्य सेवाओं जैसी सुविधाएं मिलती हैं। इस स्टार्टअप ने एक खास रिसर्च के जरिए ‘फ्लेदर’ नामक उत्पाद भी बनाया है, जो जानवरों के चमड़े का एक टिकाऊ विकल्प है। इसे च्म्ज्। ने ‘विगन वर्ल्ड का बेस्ट इनोवेशन’ का अवॉर्ड दिया है।
भारत अब सस्टेनेबिलिटी यानी स्थायी विकास और कचरे से धन बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। अगर मंदिरों में कंपोस्टिंग (खाद बनाने) के गड्ढे लगाए जाएं और मंदिरों के ट्रस्ट या स्वयं सहायता समूहों को इस काम में शामिल किया जाए, तो इससे कई रोजगार के मौके बन सकते हैं। पंडितों और भक्तों को यह समझाना भी जरूरी है कि फूलों को नदी में न फेंकें। इसके अलावा, ष्ग्रीन टेम्पलष् जैसे कॉन्सेप्ट से मंदिरों को इको-फ्रेंडली बनाया जा सकता है। पारंपरिक फूलों की बजाय डिजिटल या जैविक विकल्पों को बढ़ावा देना भी एक अच्छा उपाय है।
भारत में पुष्प कचरे के प्रबंधन में तेजी से बदलाव हो रहा है। यह न सिर्फ महिलाओं को रोजगार दे रहा है, बल्कि पर्यावरण की भी सुरक्षा कर रहा है।
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स को फॉलो कर वेस्ट मैनेजमेंट में योगदान दे रहे बल्क वेस्ट जनरेटर्स:
वेस्ट मैनेजमेंट आज भी अगर दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में खड़ा हुआ है, तो उसके पीछे एक बड़ा कारण ऐसी इकाइयां हैं, जो सबसे ज्यादा तादाद में कचरा उत्पन्न करती हैं। इन इकाइयों में ऐसे संस्थान होते हैं जो संयुक्त रूप से काम करते हुए बड़ी तादाद में वेस्ट जनरेट करते हैं। ऐसी इकाइयों की वजह से ही किसी भी शहर पर हर दिन उत्पन्न होने वाले कचरे का बोझ तेजी से बढ़ता है। यही वजह है कि ऐसी इकाइयां जो बल्क वेस्ट जनरेटर (बीडब्ल्यूजी) कहलाती हैं, वह देशभर के शहरों पर कचरे के बोझ की चुनौती बढ़ा रही हैं। आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के अंतर्गत वर्तमान में देशभर के शहरों से प्रतिदिन निकलने वाले डेढ़ लाख टन कचरे में 76 प्रतिशत की हर दिन प्रोसेसिंग की जा रही है, जिसमें से एक अनुमान के अनुसार 45 से 60 हजार टन कचरा यानी 30 से 40 प्रतिशत योगदान बल्क वेस्ट जनरेटर्स का होता है। वहीं कुछ ऐसे शहर भी हैं जो इन कठिन चुनौतियों का डटकर सामना कर रहे हैं और दूसरे शहरों को भी इस बड़ी मुश्किल का हल सुझा रहे हैं।
बल्क वेस्ट जेनरेटर (बीडब्ल्यूजी) और नियमरू म्यूनिसिपिल सॉलिड वेस्ट (एमएसडब्ल्यू) मैनेजमेंट रूल्स 2016 के अनुसार बल्क वेस्ट जेनरेटर (बीडब्ल्यूजी) एक ऐसी इकाई को कहा जाता है, जो प्रतिदिन 100 किलोग्राम से अधिक कचरा उत्पन्न करती है। बल्क वेस्ट जनरेटर गाइडलाइंस 2017 के मुताबिक अनुमान है कि किसी भी शहर के कुल कचरे में बीडब्ल्यूजी का योगदान 30 से 40ः होता है, जिसमें से 50-70ः कचरा बायोडिग्रेडेबल होता है। शहरों के शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को अपने म्यूनिसिपल बाइ-लॉ में दिए गए जरूरी प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए बीडब्ल्यूजी के वेस्ट मैनेजमेंट एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए लीगल मैंडेट का भी पालन करना होता है। क्षेत्र के बल्क वेस्ट जनरेटर्स की पहचान करना शहरी स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है, अगर कोई खुद को बीडब्ल्यूजी कैटेगरी में सेल्फ डिक्लेयर नहीं करता है और नियमों का उल्लंघन करता है, यूएलबी उसपर कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है। बीडब्ल्यूजी की श्रेणी में आने वाली इकाइयां और संस्थानरू बल्क वेस्ट जनरेटर्स में ऐसी ग्रुप हाउसिंग सोसायटी, सभी तरह के स्कूल और कॉलेज, बड़े संगठन, कार्यक्रम एवं आयोजन स्थल, छोटे-बड़े होटल, छोटे-बड़े ढाबे या रेस्तरां, केंद्र या राज्य सरकार के विभाग, शहरी स्थानीय निकाय, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, निजी कंपनियां, छोटे-बड़े अस्पताल एवं नर्सिंग होम आदि सभी शामिल होते हैं, जहां से हर दिन सौ किलो से ज्यादा कचरा निकलता है।
आगरा के राजनगर में नगर निगम के माध्यम से तीन डिसेंट्रलाइज्ड वेस्ट टु कंपोस्ट प्लांट स्थापित किए गए हैं, जहां पर 2000 के करीब बल्क वेस्ट जनरेटर्स से मिलने वाला ऑर्गेनिक वेस्ट स्थायी रूप से प्रबंधित किया जा रहा है। इनमें से दो प्लांट्स पर बसई, सिंकदरा और बरोली अहीर एरिया की तीन मंडियों से आने वाला फल-सब्जियों का वेस्ट और एक जगह मंदिरों से आने वाला फूलों का वेस्ट इकट्ठा किया जाता है। ट्रांसपोर्ट नगर में 1 टन और राजनगर के दोनों प्लांट पर 2-2 टन वेस्ट प्रतिदिन निस्तारित किया जा रहा है।

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