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लक्ष्य की काव्य संध्या ने मन मोहा

वेबवार्ता (न्यूज़ एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ 26 दिसंबर। लक्ष्य साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थान, उत्तर प्रदेश युवा छंदकार मंच तथा पं. रामतेज तिवारी आध्यात्मिक संस्थान, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में स्थानीय अवध कुंज पार्क, हजरतगंज में आज अमृत महोत्सव एवं काव्य समारोह का सफलतापूर्वक आयोजन सम्पन्न हुआ।
उक्त कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि डॉ सुभाष गुरुदेव ने की तथा वरिष्ठ कवि भ्रमर बैसवार एवं वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि श्याम मिश्र मुख्य अतिथि क्रमशः प्रथम एवं मुख्य अतिथि द्वय थे तथा वरिष्ठ कवि कमल किशोर ‘भावुक’ विशिष्ट अतिथि थे। कार्यक्रम का संचालन कवि व्यंग्यकार मनमोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी’ ने तथा वाणी वन्दना अनिल किशोर शुक्ल ‘निडर’ ने किया। अपने अपने देशभक्ति गीतों एवं समसामयिक विषयों पर काव्यात्मक प्रस्तुतियों से जिन जिन विद्वतजनों काव्य मनीषियों ने काव्यगोष्ठी को शिखरता प्रदान कीं, उनके नाम व काव्यांश निम्नवत हैं –
अनिल किशोर शुक्ल ‘निडर’ –
राष्ट्र प्रेम की अलख जगायें।
जन-गण-मन का मान बढ़ायें।।
रत्ना बापुली –
वन्देमातरम गाते गाते, कितने शहीद और कुर्बान हुए,
वे सभी थे हिन्द के वासी, न हिन्दू न मुसलमान हुए।।
शायर एल.पी. ‘गुर्जर लखनवी’ –
घटिया, घटिया ही रहें, करते मन की बात।
जितनी इज्जत करोगे, करते नित प्रतिघात।।
प्रवीण कुमार शुक्ला ‘गोबर गणेश’ –
देहो हमका का देहो
जो कुछ देहो बिटिया दामाद का देहो।
अरविन्द रस्तोगी –
देश के लिए जिया, त्याग देशहित किया।
अटल बिहारी ऐसा नाम, वो कमा गया।।
नयन सभी के नम, अश्रु पड़ें न कम,
नभ में सितारा बन, आंच चमचमा गया।।
महेश घावरी –
छोड़ के किनारे नदी, कहे कैसी आई सदी,
मोह जिन्दगी से नतु, जल की पिपासा है।
जीव जन्तु थे उदास, आये बावरी के पास,
कुएं का भी गला सूखा, कुआं खुद प्यासा है।।
दिनेश सोनी –
यह शौर्य शिवा का अशेष है बन्धु ! औ साहस वीर प्रताप का है।
मत देखिये जोड़ के बाबर से, तब देश तुम्हारे भी बाप का है।।
शरद कुमार पाण्डेय ‘शशांक’ –
निज देश की सम्पत्ति फूंक के मौज उड़ाते सदैव विदेश में हैं।
पहिचाने कहो किस भांति उन्हें, अब रावण राम के भेष में हैं।।
डॉ सुधा मिश्रा –
जब प्यार की बात करे कोई, तुम तद्भव हो जाते हो।
जब प्रेम समर्पण चाहे, तत्सम बनकर छाते हो ।
मनमोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी’ –
थे गुरु गाँधी के वे, मगरूर बन्दर हो गये।
गाँधी के आदर्श थे वे, दूर बन्दर हो गये।।
अब खुद बुरा कहते हैं वे, देखते सुनते भी हैं,
इस बदलते वक्‍त में, मजबूर बन्दर हो गये।।
रामराज भारती –
तांबा पीतल फूल गुम, चली फाइबर थाल।
रिश्ते सब बौने हुए , याद रही ससुराल।।
कन्हैया लाल –
शत बार जन्म लें धरती पर,
दुनिया के जो अच्छे लोग।
धरा पर थमें मनुज संहार,
मिटें सब पापी दुर्जन लोग।।
कमल किशोर ‘भावुक’ –
वो दीया कितना अचम्भा कर रहा है दोस्तों,
आप अपनी रोशनी से डर रहा है दोस्तों।
श्याम मिश्र –
प्यारे! इस संसार में, क्या खोना अब होश।
अपने तो अपने नहीं, गैरों का क्या दोष?
नदी किनारों से कहे, मुझे कभी मत टोक।
चढ़ी जवानी को भला, कौन सका है रोक?
सम्पत्ति कुमार मिश्र ‘भ्रमर बैसवार’ –
भूली बिसरी यादें रहिगे, गांव गली गलियार।
खान पान पहिरावा बदला, बिसरि गवा व्यवहार।।
डॉ सुभाष गुरुदेव –
मेरे शूल भरे पथ में भी, बात उसूलों की होती है।
सूखी डाल सरीखा हूं पर, खेती फूलों की होती है।।
जब तुम नाहक छिड़का करती, हो नमक हमारे घावों पर।
तब कैसे अनुमोदन कर दूं, प्रणय प्रलोभित प्रस्तावों पर।।
अन्त में लक्ष्य संस्था के सचिव प्रवीण कुमार शुक्ला ने आये हुए सभी अतिथियों काव्य मनीषियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए समारोह के समापन की घोषणा की।

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