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जाने भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि और महात्म्य

वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा/ लखनऊ।
पूजा शुभ मुहूर्त: शुभ मुहूर्त- १७ सितम्बर २०२४ प्रातः ११ः५१ बजे से दोपहर १२ः४० तक रहेगा।
पूजा विधि: विश्वकर्मा जयंती के दिन सुबह जल्दी उठें। फिर स्नानादि करने के बाद साफ कपड़े पहनकर पूजा स्थल की साफ-सफाई करें। इसके बाद पूजा का संकल्प लेते हुए भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति को स्थापित करते हुए पूजा आरंभ करें। साथ ही भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति के साथ संबंधित औजारों की पूजा करने का भी संकल्प लें। इसके बाद विधि-विधान और शास्त्रों में बताई गई पूजा विधि से अनुष्ठान प्रारंभ करें। विश्वकर्मा पूजा अपनी पत्नी के साथ करना चाहिए। पत्नी सहित यज्ञ के लिए पूजा स्थान पर बैठें. हाथ में फूल, अक्षत लेकर भगवान विश्वकर्मा का नाम लेते हुए घर में अक्षत छिड़कना चाहिए। भगवान विश्वकर्मा को पान, सुपारी, हल्दी, अक्षत, फूल, लौंग, फल और मिठाई अर्पित करें। फिर धूप और दीप जलाकर आरती करें और रक्षासूत्र अर्पित करें। भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा के साथ कार्यालय की मशीनों और औजारों की पूजा करें। अंत में हवन कर सभी लोगों में प्रसाद का वितरण करना चाहिए। भगवान विश्वकर्मा से पूजा में भूलवश हुई किसी गलती के लिए माफी मांगते हुए कारोबार में उन्नति की प्रार्थना करें।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा निर्माण एवं सृजन के देवता कहे जाते हैं। इन्द्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्ग लोक, लंका आदि का निर्माण किया था। इस दिन विशेष रुप से औजार, मशीन तथा सभी औद्योगिक कंपनियों, दुकानों आदि पूजा करने का विधान है। हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार हर वर्ष विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति को होती है। कहते हैं कि इसी दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। विश्वकर्मा पूजा के विषय में कई मत हैं। कई लोग भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विश्वकर्मा पूजा करते हैं, कुछ कन्या संक्रांति को करते हैं जो इस वर्ष १६ सितम्बर, २०२४ को है, तो कुछ लोग इसे दीपावली के अगले दिन मनाते हैं।
एक कथा के अनुसार संसार की रंचना के आरंभ में भगवान विष्णु सागर में प्रकट हुए। विष्णु जी के नाभि-कमल से ब्रह्मा जी दृष्टिगोचर हो रहे थे. ब्रह्मा के पुत्र धर्म का विवाह वस्तु से हुआ। धर्म के सात पुत्र हुए इनके सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया, जो शिल्पशास्त्र की कला से परिपूर्ण थे। वास्तु के विवाह के पश्चात उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम विश्वकर्मा रखा गया, जो वास्तुकला के अद्वितीय गुरु बने।
विश्वकर्मा पूजा के समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ओम आधार शक्तपे नम:
ओम् कूमयि नम:
ओम अनन्तम नम:
पृथिव्यै नम:
मान्यता है कि विश्वकर्मा पूजा करने वाले व्यक्ति के घर धन-धान्य तथा सुख-समृद्धि की कभी कोई कमी नही रहती है। इस पूजा की महिमा से व्यक्ति के व्यापार में वृद्धि होती है तथा सभी मनोकामना पूरी हो जाती है।
(यह कथा एवं विधि पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है। स्वर्ण प्रिया इसकी पुष्टि नहीं करता)

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