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जैन धर्म सूक्ष्म से सूक्ष्म हिंसा का विरोधी :

– भगवान महावीर 2623वीं जन्मजयंती पर विषेष
वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ 21 अप्रैल। वर्तमान युग में भगवान महावीर के अस्तित्व को जैन धर्म ही नहीं अपितु सारा विश्व स्वीकार करता है। भगवान महावीर की अहिंसा जन-जन के लिए है। क्योंकि जैन धर्म सूक्ष्म से सूक्ष्म हिंसा का विरोध करता है। अहिंसा परमोधर्म सर्व व्यापी संदेश है। जो कि प्राणी मात्र के लिए एक रक्षाकवच का कार्य करता है। जिसने अहिंसा का पालन किया वह जैन है। इसी लिए कहा है कि जैन जाति ना होकर के एक धर्म है।
भगवान महावीर के संदेशों में मुख्यरूप से अहिंसा परमो धर्मः एवं जिओ और जीने दो मुख्य है। जो व्यवहार हम अपने लिए नहीं चाहते हमें दूसरों के लिए भी नहीं करना चाहिए। किसी के मन को दुखी करना भी भगवान महावीर ने हिंसा कहा है। सारे विश्व में यदि शांति की स्थापना की जा सकती है तो वह अहिंसा से ही की जा सकती है। अहिंसा के अवतार भगवान महावीर का आज 2623 वां जन्मकल्याणक सारा विश्व निरामिश दिवस के रूप में मना रहा है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य यही है कि हम अपने जीवन में व्यसनों का त्याग करके भगवान महावीर के सिद्धांतों पर चल कर अपने जीवन को समुन्नत बनायें एवं एक सभ्य समाज का निर्माण करें जिससे भारत देश प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सके। भगवान महावीर के इस जन्म दिवस पर हम सभी संकल्प ले कि हम अपने जीवन में अहिंसामयी धर्म को अपना कर अपना एवं अपने परिवार का कल्याण करेेंगे।
2622 वर्ष पूर्व जन्में थे महावीर स्वामी:
भगवान महावीर का जन्म आज से 2622 वर्ष पूर्व बिहार प्रांत के कुण्डलपुर ग्राम के महाराजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला के गर्भ से नंद्यावर्त महल में हुआ था। उस समय धनकुबेर ने इंद्रों के साथ मिलकर प्रतिदिन 14 करोंड़ रत्नों की वृष्टि की थी, ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है। क्षण भर के लिए नरकों में भी शांति का वातावरण छा गया। नेमीचंद सिद्धांत चक्रवर्ती ने प्रतिष्ठा तिलक ग्रथ में भगवान के जन्म कल्याणक का उल्लेख करते हुए लिख-
कल्पेषु घंटा भवनेषु शंखो, ज्योतिर्विमानेषु च सिंहनादः। दध्वान भेरी वनजालयेषु, यज्जन्मनि ख्यात जिनः स एषः।। ३
आज वर्तमान युग में वह कुण्डलपुर नगरी वैभव हीन हो गई थी लेकिन जैन साध्वी भारतगौरव गणिनीप्रमुख ज्ञानमती की प्रेरणा से पुनः कुण्डलपुर तीर्थ को भव्य रूप में विकसित किया गया। भगवान महावीर ने जिस महल में जन्म लिया था वह महल सोने का हुआ करता था किन्तु आज वर्तमान में उसकी प्रतिकृति कुण्डलपुर तीर्थ पर निर्मित की गई है। जिसमें भगवान महावीर के जीवन से संबंधित सभी घटनाओं को दर्शाया गया है। नालंदा आज वर्तमान में विश्व प्रसिद्ध स्थान है। जहाॅं पर अनेक देशों के लोग आते है एवं कुण्डलपुर तीर्थ पर नंद्यावर्त महल में भगवान महावीर का दर्शन करके सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से यहाॅं पर आने वाला प्रत्येक व्यक्ति एक अध्यात्मिक ऊर्जा की अनुभूति करता है। भगवान महावीर की श्वेतवर्णी अवगाहना प्रमाण (सात हाथ) की प्रतिमा का दर्शन करके पलक झपकाना जैसे भूल जाता हो मनोहारी प्रतिमा वीतरागता एवं अहिंसा का संदेश इस नालंदा कुण्डलपुर की धरती से देेता है।
भगवान महावीर के पाॅंचों कल्याणक से पवित्र बिहार की धरती आत्यात्मिक ऊर्जा को अपने आॅंचल में समेटे हुए है। बुद्ध और महावीर की यह धरती आने वाले दर्शकों का मन मोह लेती है। भगवान महावीर का सात मंजिल का नंद्यावर्त महल शास्त्रों में वर्णित है:
‘‘जन्म चैत सित तेरस के दिन कुण्डलपुर, कन वरना। सुरगिरि सुरगुरू पूज रचायों, में पूजों भव-हरना नाथ मोह राखो शरना’’।।
भगवान महावीर की देशना सारे देश में घूम घूम करके अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। प्राणी मात्र को जियो और जीने दो की बात बताई भगवान का मुख्य संदेश था की प्राणी मात्र पर दया का भाव रखो जीवों की हिंसा में धर्म नही है। धर्म हमेशा सुख और शांति का संदेश देता है। आज वर्तमान में भगवान महावीर के संदेशों की अत्याधिक आवश्यकता है। जैन श्रद्वालु प्रातःकाल भगवान की जय-जय कारों के साथ प्रभातफेरी नगर में घुमाते है एवं भगवान महावीर स्वामी के जीवन से संबंधित संगोष्ठी का आयोजन करते हुए समस्त महिला संगठन भवगान महावीर के जीवन से संबंधित नृत्य नाटिका एवं जीवन चरित्र का नृत्य नाटिका के माध्यम से मंचन करते हैं। – लेखिका: सर्वोच्च जैन साध्वी गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी

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