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बालिकाओं के सामने आने वाली चुनौतियां एवं उनके अधिकारों के संरक्षण हेतु उन्हें जागरूक करना होगा : डा0 रेखा यादव

वेब वार्ता (न्यूज़ एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ 11 अक्टूबर। अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस प्रत्येक वर्ष 11 अक्टूबर को मनाया जाता है। समाज में बालिकाओं के सामने आने वाली चुनौतियां एवं उनके अधिकारों के संरक्षण हेतु जागरूक करना होगा। महिलाएं समाज का आधा हिस्सा मानी जाती है। आधी आबादी के रूप में अपनी उपस्थिति को दर्ज करने वाली महिलाएं अपने घरों के बंधन को तोड़कर अब घर की चैखट को लांघ चुकी है। समाज का कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहा जहां महिलाओं ने अपना परचम ना लहराया हो अब वह बिना किसी बंदिश के अपना जीवन की रही है खुलकर सांस ले रही है परंतु हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज माना जाता है और जहां महिलाओं को सदैव दोयम दर्जा ही दिया गया उन्हें असहाय और पराश्रित ही कहा गया।
हालांकि महिलाएं आज समाज में अपने अधिकारों को लेकर बेहद सजग हैं। लेकिन जैसा कि मैं पहले बता चुकी हूं कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है तो पुरुषों में ही कुछ समाज के ठेकेदार बैठे हैं जिन्हें महिलाएं बाहर नहीं घरों के अंदर ही ठीक लगती है वह उनकी तरक्की की राह में अड़चन पैदा करते हैं और जब महिलाएं नहीं रुकती तो कई बार उन्हें शारीरिक मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने के भी पीछे नहीं रहते अक्सर समाचार पत्रों और टीवी में हम महिलाओं के साथ हुई हिंसा की खबरें देखने को मिलती है इससे भी दुख की बात को यह है कि कहीं पर भी महिलाओं के साथ हो रही हिंसा का पर आम आदमी अपनी चुप्पी को नहीं तोड़ना चाहता इस प्रकार की घटनाएं महिलाओं के प्रति समाज में बढ़ रही असंवेदनशीलता को दर्शाता है।
पुरुष प्रधान समाज में घर का मुखिया भी पुरुष ही होता है उसका ही बनाया हुआ नियम कानून घर में चलता है। उनको देखते-देखते बालकों के मन मस्तिष्क में भी अपने को श्रेष्ठ और बालिकाओं को कमजोर समझने की भावना पनप जाती है जिससे वह लड़के महिलाओं के साथ भेदभाव तथा प्रताड़ना को बढ़ावा देते हैं परंतु स्तिथियां तब और बद से बदतर हो जाती हैं जब प्रताड़ना झेलने वाली महिलाओं का साथ यह समाज भी नहीं देता। किसी भी अपराध पर यदि महिला आवाज उठाना चाहे भी तो उसके घर वाले उसे चुप रहने की रहने की सलाह देते हैं दरअसल समाज में बढ़ रहे अपराध और अपराधियों के हौसले बुलंद होने के पीछे कहीं ना कहीं महिलाओं के घर वाले भी जिम्मेदार होते हैं। समाज सोचता है कि महिलाओं के साथ जो घटनाएं घटित होती है उसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। इसी कारण यदि किसी महिला के साथ सड़क पर भी जबरदस्ती हो रही है तो लोग तमाशा देखते हैं पर कोई मदद के लिए आगे नहीं आता समाज में महिला को दोयम दर्जा दिए जाने के कारण पुरुष के द्वारा किए जाने वाले अत्याचार को सहन करने की स्वीकृति महिला अपराध को बढ़ा रही है।
जघन्य अपराध करने वाले अपराधी समाज में बेखौफ घूमते हैं क्योंकि उन्हें ना तो कानून का डर है ना समाज का कानून का लचीला होने से अपराधियों में कानून का डर समाप्त हो चुका है वरना कठोर दंड के डर मात्र से यह अपराध करने से पहले बार-बार सोचें इस प्रकार की अपराधों को रोकने की जिम्मेदारी समाज की भी है प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसका घर समाज में परिवर्तन ही प्रथम सीढ़ी है बच्चों को अच्छा बुरा मान सम्मान सब की शिक्षा की शुरुआत यहीं से होती है। घर के बड़ों को यह समझने और समझने की आवश्यकता है कि लड़का और लड़की में कोई भेद नहीं होता है लड़का यदि घर का दीपक है तो लड़की उस दीपक की रोशनी लड़कों को प्रत्येक लड़की की सुरक्षा और उसके अधिकारों की सुरक्षा के लिए सजग रहने की सीख देनी चाहिए इससे लड़के लड़कियों के साथ हो रहे अपराध को रोकने में सहयोग करेंगे और साथ ही महिलाओं को भी किसी भी व्यक्ति के द्वारा किए जाने वाले गलत व्यवहार का विरोध करना सीखना चाहिए ताकि वह इस प्रकार की विरोध प्रतीक क्रियो में भी सावधान रहे और अपनी सुरक्षा का भी ध्यान रखें इस प्रकार लगातार हो रहे अपराधों को रोकने में समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का दायत्व बनता है कि वह पुरुषों द्वारा उनकी हवस का शिकार बन रही युवतियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली ना कि उनका तमाशा बनाएं ।कानून अपना काम करता है लेकिन बावजूद उसके आवश्यकता है कि समाज के व्यक्ति सजग रहे अपने आसपास होने वाले अपराध पर तुरंत एक्शन लेकर यदि ऐसा होने लगा तो समाज में निश्चित रूप से अपराधी अपराधों पर लगाम लगाई जा सकती है इससे मैं यह तो नहीं कह सकती कि अपराध खत्म हो जाएंगे हां अपराधी अपराध करने के पूर्व सोचेंगे जरूर और अपराध कम हो जाएंगे समझ में इस प्रकार के ऐसे जघन्य अपराध महिला हिंसा को रोकने के लिए अपराधों के खिलाफ एकजुट होकर नजदीकी थाने में रिपोर्ट दर्ज करने की हिम्मत भी दिखानी होगी तब जाकर महिलाओं के साथ हो रही बर्बरता पर कानून भी शक्ति के साथ अपना काम करेगा तथा सभी लक्ष्यों में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को सुनिश्चित करके ही न्याय समावेश आर्थिक विकास एवं एक स्थाई वातावरण प्राप्त किया जा सकता है

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