– उकेर कर बनाये गये लेखों को अभिलेख कहते हैं
– पुरालेख एवं पुरालिपि कार्यशाला आयोजित
वेब वार्ता (न्यूज़ एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ। लखनऊ एवं उ०प्र० पुरातत्व निदेशालय, लखनऊ द्वारा पुरालेख एवं पुरालिपि कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इसका शुभारम्भ आज गुरूवार को हुआ। मुख्य अतिथि प्रो० के०के० थपल्याल, पूर्व विभागाध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा विषय पर प्रकाश डालते हुए ब्राह्मी लिपि से परिचय कराते हुए बताया कि लेख एवं अभिलेख में क्या अन्तर है। उकेर कर बनाये गये लेखों को अभिलेख कहते हैं। जिन्हें प्राचीनकाल में राजा नियम और कानून बनाने के लिए प्रयोग में लाते थे, साथ ही अभिलेखों का प्रयोग नगरीकरण के लिए किया जाता था। उक्त कार्यक्रम में वक्ता डॉ० डी० पी० शर्मा संवानिवृत्त निदेशक, भारत कला भवन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी ने बताया सनातन परम्परा से ही सिन्धु घाटी के सामाजिक सांस्कृतिक तत्व जुड़े हुए हैं। कार्यक्रम के दूसरे वक्ता डॉ० टी० एस० रविशंकर, सेवानिवृत्त निदेशक (पुरालेख) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, मैसूर ने लेखन कला के विकास के महत्व को बताते हुए कहा कि इसका विकास अग्नि एवं पहिये के विकास से अधिक महत्त्वपूर्ण है। कुछ महत्त्वपूर्ण किताबों के विषय में भी बताया गया। उक्त कार्यशाला में लगभग 90 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया।
उक्त कार्यक्रम में राज्य संग्रहालय लखनऊ की निदेशक डा० सृष्टि धवन, उ०प्र० राज्य पुरातत्व निदेशालय, लखनऊ की निदेशक डॉ० रेनू द्विवेदी, डॉ० मीनाक्षी खेमका सहायक निदेशक, डॉ० विनय कुमार सिंह मुद्राशास्त्र अधिकारी, डॉ० कृष्ण ओम सिंह, संग्रहालयाध्यक्ष लोक कला संग्रहालय, डॉ० राजीव त्रिवेदी, सहायक पुरातत्व अधिकारी एवं डॉ० अनीता चौरसिया, प्रदर्शक व्याख्याता आदि उपस्थित रहे। डॉ० मीनाक्षी खेमका द्वारा कार्यक्रम का संचालन किया गया।
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