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जेल के बाहर समाज में विकृतियां ज्यादा : धर्मवीर प्रजापति

वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ 04 अक्टूबर। जेल समाज का वो हिस्सा है जहां रहने वाले हर कैदी को हेय दृष्टि से देखा जाता है। जबकि जेल में लोगों को सुधरने के लिए भेजा जाता है। इनमें से कुछ लोगों को अगर छोड़ दिया जाए तो जेल से सजा काट कर निकलने वाले अधिकांश लोग इस संकल्प के साथ बाहर आते हैं कि दोबारा जीवन में वो कोई अपराध नहीं करेंगे। मानवीय दृष्टि से देखा जाए तो जेल अपराधी के मन के दृष्टिकोण को बदलने का सबसे उपयुक्त स्थान है, जहां वो अपने गुनाहों की सजा काटते हैं। खुद बिहारी जी ने कारागार में जन्म लेकर आसुरी शक्तियों का नाश कर समाज को भयमुक्त, अपराधमुक्त और अपराधी मुक्त रहने का संदेश दिया है। और जेल में रहकर कैदी भी अपने मन मस्तिष्क में व्याप्त विकारों से तौबा करते हैं। प्रदेश के कारागार एवं होमगार्ड मंत्री धर्मवीर प्रजापति भी इन्हीं उद्देश्यों के साथ यूपी की जेलों में बंद समाज के बहिष्कृत लोगों को बदलने की पुरजोर कोशिश में जुटे हुए हैं।
       अपने सरकारी आवास में NUJUP के पदाधिकारियों और विभिन्न अखबारों के पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने बंदियों के जीवन में सुधार के लिए किए जा रहे तमाम क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से बताया। साथ ही यह भी जानकारी दी कि किस तरह से सरकार और विभाग बंदियों के व्यवहार परिवर्तन के लिए काम कर रहा है। मंत्री प्रजापति ने बताया कि जेलों में 40 वर्ष तक के बंदियों की संख्या का प्रतिशत सबसे अधिक है। करीब 80 फीसदी कैदी युवा हैं जिनकी उम्र 40 वर्ष से कम है। उन्होंने कहा कि सभी कैदी पेशेवर नहीं हैं, कुछ लोग अनायास घटना घटित होने कि वजह से कैदी बन जाते हैं। मानवीय दृष्टि से ऐसे बंदियों को संभलने का अवसर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब से वे कारागार मंत्री बने हैं तब से लगातार जेलों में सुधार कैसे हो, बन्दियों के व्यवहार में बदलाव कैसे हो इसी पर कार्य कर रहे हैं।
श्री बांके बिहारी ने पहने कैदियों द्वारा निर्मित पोशाक
मथुरा जिला जेल के कैदियों ने इस बार भगवान श्रीकृष्ण के लिए पोशाक बनाई, जिसे खुद कारागार मंत्री अपने सिर पर रखकर मंदिर पहुंचे थे। श्री बांके बिहारी जी के लिए पोशाक बनाने का काम 15 दिन में पूरा किया गया था। इसे तैयार करने में जिन बंदियों ने योगदान दिया उनमें भरत, नेहना, करन, बॉबी, शेर सिंह, पिंटू, राहुल और सोनू शामिल रहे। कौशल विकास मिशन के तहत बंदियों को कच्चा सामान जेल प्रशासन ने उपलब्ध कराया था। रेशम के धागे से बनी हल्के पीले रंग की यह पोशाक 24 मीटर कपड़े से बनी थी। 11 पार्ट में तैयार इस पोशाक में धोती, बगलबंद, दुपट्टा, कमरबंद, प्रतिमा के पीछे लगने वाला पर्दा, भगवान के सिंहासन पर बिछने वाला कपड़ा शामिल है।

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