SOP लाये जाने के पहले उत्तर प्रदेश में करीब 900 मोटर ट्रेनिंग स्कूल संचालित रहे लेकिन नयी SOP के आने के बाद इनकी संख्या प्रदेश में करीब 200 ही बची है।
वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश का ट्रांसपोर्ट विभाग बीते कुछ दिनों से अपने पीपीपी माडल के फैसलों को लेकर काफी चर्चा में है। प्रदेश के कुछ बस अड्डों को पीपीपी माडल पर देने को लेकर ट्रांसपोर्ट यूनियन हड़ताल पर जाने का फैसला तो बीते दिनों गोमती नगर की एक जमींन का मामला भी काफी चर्चित रहा था। इसके आलावा अब सरकार ने मोटर ट्रेनिंग व्यवसाय से जुड़े कुछ संपन्न लोगों को मार्केट में बनाये रखने के लिए मझोले और छोटे व्यवसायियों को येन केन प्रकारेण मार्केट से बाहर करने का मन बना लिया है।
इन मझोले और छोटे व्यवसायियों को कोर्ट से राहत मिली तो परिवहन आयुक्त ने 03 अक्टूबर को शासन से अनुमति मिले बगैर इस व्यवसाय से जुड़े एक बड़े वर्ग के पक्ष में एक आदेश पारित कर अपनी पुरानी मंशा को अंजाम दे दिया जिससे मझोले और छोटे व्यवसायियों में काफी रोष है। “सबका साथ सबका विकास” का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी की योगी सरकार का ट्रांसपोर्ट विभाग किस तरह से सुरक्षा और पारदर्शिता के नाम पर कुछ मुट्ठी भर लोगों की मुट्ठी भरने के लिए नीति निर्धारित कर उसी के एक बड़े प्रतिस्पर्धी वर्ग के हितों को दरकिनार कर रहा है, उसको कोर्ट से मिली राहत के बाद परिवहन आयुक्त के आदेश से लगाया जा सकता है जिससे मोटर ट्रेनिंग व्यवसाय से जुड़े बड़े व्यवसायियों के ही हितों की रक्षा हो रही है। इससे “बड़ी मछली, छोटी मछली को खा जाती है, वाली कहावत चरित्रार्थ हो रही है। बड़ा सवाल यह है कि सरकार द्वारा 2023 में पीपीपी माडल पर स्थापित किये गये प्रत्यायन चालन केंद्र की व्यवस्था उन्हीं बड़े मोटर ट्रेनिंग संचालकों के हाथ में होने से वर्षों से मध्यम व छोटे स्केल पर मोटर ट्रेनिंग के काम में जुटे लोगों लोगों के हितों की रक्षा कैसे करेंगे जबकि वह प्रतिस्पर्धी हैं।
बताते चलें कि पहले सरकार द्वारा 2023 में पीपीपी माडल पर स्थापित किये गये प्रत्यायन चालन केंद्र की व्यवस्था को लाने के बाद पूर्व से संचालित मोटर ट्रेनिग स्कूलों को व्यवसाय से बहार करने के उद्देश्य से “मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) लायी गयी जिसमें मानकों को काफी सख्त कर दिया गया। मानकों में बदलाव को लेकर मामला न्यायालय तक गया और सरकार के फैसले पर उच्च न्यायालय ने रोक लगाई। सरकार की 2023 में लायी गयी पीपीपी माडल की यह पालिसी मोटर ट्रेनिंग व्यवसाय से जुड़े शीर्ष के कुछ मुट्ठी भर नए व अनुभवहीन लोगों के लिए रही जबकि इस व्यवसाय से जुड़ा मध्यम और निचला वर्ग काफी प्रभावित हुआ और उसके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया।
गौरतलब है कि मोटर ड्राईविंग के लिए यह टेस्ट की व्यवस्था अभी तक सरकार के जिला परिवहन कार्यालयों के पास रही थी जिसको अब सरकार ने बदलकर व्यवसाय से जुड़े प्रतिस्पर्धीयों को दे दिया गया है। जिससे यह साफ है कि सरकार की मंशा पारदर्शिता के साथ प्रतिस्पर्धा कराने का नहीं बल्कि व्यवसाय से जुड़े माध्यम व निचले स्तर के लोगों को मार्केट से बाहर कर, इस वर्ग के प्रतिस्पर्धी एक संपन्न वर्ग को मार्केट में स्थापित करना है।
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