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‘एक देश-एक चुनाव’ का फैसला संविधान को खत्म करने का एक और षड्यंत्र: अखिलेश यादव

वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ। ‘एक देश-एक चुनाव’ का फैसला सच्चे लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा। ये देश के संघीय ढांचे पर भी एक बड़ी चोट करेगा। इससे क्षेत्रीय मुद्दों का महत्व ख़त्म हो जाएगा और जनता उन बड़े दिखावटी मुद्दों के मायाजाल मे फंसकर रह जाएगी, जिन तक उनकी पहुँच ही नहीं है। अगर भाजपाइयों को लगता है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन, अच्छी बात है तो फिर देर किस बात की, केंद्र व सभी राज्यों की सरकारें भंग करके तुरंत चुनाव कराइए। दरअसल ये भी ‘नारी शक्ति वंदन’ की तरह एक जुमला ही है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आज उक्त कहा।
उन्होंने आगे कहा कि लोकतांत्रिक संदर्भों में ‘एक’ शब्द ही अलोकतांत्रिक है। लोकतंत्र बहुलता का पक्षधर होता है। ‘एक’ की भावना में दूसरे के लिए स्थान नहीं होता। जिससे सामाजिक सहनशीलता का हनन होता है। व्यक्तिगत स्तर पर ‘एक’ का भाव, अहंकार को जन्म देता है और सत्ता को तानाशाही बना देता है। हमारे देश में जब राज्य बनाए गये तो ये माना गया कि एक तरह की भौगोलिक, भाषाई व उप सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के क्षेत्रों को ‘राज्य’ की एक इकाई के रूप में चिन्हित किया जाए। इसके पीछे की सोच ये थी कि ऐसे क्षेत्रों की समस्याएं और अपेक्षाएं एक सी होती हैं, इसीलिए इन्हें एक मानकर नीचे- से- ऊपर की ओर ग्राम, विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के स्तर तक जन प्रतिनिधि बनाएं जाएं। इसके मूल में स्थानीय से लेकर क्षेत्रीय सरोकार सबसे ऊपर थे। ‘एक देश-एक चुनाव’ का विचार इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही पलटने का षड्यंत्र है। एक तरह से ये संविधान को खत्म करने का एक और षड्यंत्र भी है। इससे राज्यों का महत्व भी घटेगा और राज्यसभा का भी। कल को ये भाजपा वाले राज्यसभा को भी भंग करने की माँग करेंगे और अपनी तानाशाही लाने के लिए नया नारा देंगे ‘एक देश-एक सभा’। जबकि सच्चाई ये है कि हमारे यहाँ राज्य को मूल मानते हुए ही ‘राज्यसभा’ की निरंतरता का संवैधानिक प्रावधान है। लोकसभा तो पाँच वर्ष तक की समयावधि के लिए होती है।
क्या ‘एक देश, एक चुनाव’ का मुद्दा महंगाई, बेरोजगारी, बेकारी, बीमारी से बड़ा मुद्दा है जो भाजपाई इसे उठा रहे हैं। दरअसल भाजपा इन बड़े मुद्दों से ध्यान भटका रही है। जनता सब समझ रही है। सच तो ये है कि बीजेपी को तो सोते- जागते सिर्फ चुनाव दिखाई देता है, और ये सोचते हैं कि किस तिकड़म से परिणाम इनके पक्ष में दिखाई दे। ये हर बार जुगाड़ से चुनाव जीतते हैं। इसीलिए चाहते हैं कि एक साथ जुगाड़ करें और सत्ता में बने रहें। अगर ‘वन नेशन, वन इलेक्शन‘ सिद्धांत के रूप में है तो कृपया स्पष्ट किया जाए कि प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक के सभी ग्राम, टाउन, नगर निकायों के चुनाव भी साथ ही होंगे या फिर त्योहारों और मौसम के बहाने सरकार की हार-जीत की व्यवस्था बनाने के लिए अपनी सुविधानुसार? ‘एक देश-एक चुनाव’ को लागू करने के लिए जो संवैधानिक संशोधन करने होंगे उनकी कोई समय सीमा निर्धारित की गयी है या ये भी महिला आरक्षण की तरह भविष्य के ठंडे बस्ते में डालने के लिए उछाला गया एक जुमला भर है? कल को सरकार ये कहेगी कि इतने बड़े स्तर पर चुनाव कराने के लिए उसके पास मानवीय व अन्य जरूरी संसाधन ही नहीं हैं, इसीलिए हम चुनाव कराने का काम भी (अपने लोगों को) ठेके पर दे रहे हैं।

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