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मंडल कमीशन के योद्धा शरद यादव ने ली अंतिम सांस, बेटी ने कहा पापा नहीं रहे

– देश की राजनीति में शरद यादव के राजनीतिक कद और योगदान का अंदाजा आज की पीढ़ी को भले ही न हो, लेकिन गैर-कांग्रेसी सरकारों में वो सत्ता की धुरी माने जाते रहे।
वेब वार्ता (न्यूज़ एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
दिल्ली/लखनऊ 13 जनवरी। समाजवाद की प्रखर आवाज और जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का 75 साल की उम्र में निधन हो गया। निधन की खबर सबसे पहले उनकी बेटी सुभाषिनी यादव की तरफ से ट्वीट करके दी गई। सुभाषिनी ने लिखा- ‘पापा नहीं रहे’ इसके साथ ही दुखी होने का इमोजी बनाया। शरद यादव गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती थे। गुरुवार देर रात शरद यादव का पार्थिव शरीर एंबुलेंस से दिल्ली में छतरपुर स्थित आवास पर लाया गया।
ज्ञात हो कि शरद यादव 70 के दशक में कांग्रेस विरोधी लहर में राजनीति में ऊपर उठे और दशकों तक प्रमुख विपक्षी चेहरे के तौर पर बने रहे। जयप्रकाश नारायण से लेकर चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ काम करने का लंबा अनुभव था। उन्होंने लोकदल और जनता पार्टी के जरिए करियर को आगे बढ़ाया। शरद यादव 7 बार लोकसभा के सांसद रहे हैं। वे 1989-90 में टेक्सटाइल और फूड मंत्री, 1999 में नागरिक उड्डयन, 2001 में वे केंद्रीय श्रम मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री बने, 2002 से 2004 तक केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्री, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री भी बनाए गए। इतना ही नहीं, अगस्त 1990 मंडल कमीशन को लागू करवाने में शरद यादव की अहम भूमिका थी। वीपी सिंह ने अपनी सरकार पर मंडराते खतरे और मध्यावधि चुनाव की आशंका को देखते हुए शरद यादव की बात को मान लिया और 7 अगस्त 1990 को सरकारी नौकरियों में ओबीसी समुदाय के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू करने की घोषणा कर दी। वीपी सिंह का यह मजबूरी में लिया गया फैसला था।

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