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पश्चिमी अंधानुकरण बनाम भारतीय संस्कृति

रेशु वर्मा, लखनऊ।
पश्चिमी अंधानुकरण बनाम भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता कहा जाए तो हम आज भी विश्व का नेतृत्व कर रहे हैं, किन्तु दुर्भाग्यपूर्ण वाकिया यह है कि देश के ज्यादातर नागरिक आज भी अपने गौरवशाली अतीत के बारे में अनभिज्ञता के साथ-साथ सभ्यता एवं संस्कृति के पुनर्जागरण, संवर्द्धन एवं संरक्षण के प्रति उदासीनता ही दिखला रहे हैं। जबकि हमारी संस्कृति की ओर सम्पूर्ण विश्व आशा भरी निगाहों से देख रहा है एवं हमारा अनुसरण करने के लिए आतुर है। हम भौतिकवाद की अंधी दौड़ में भ्रमित होकर अपने अस्तित्व को ही खत्म करने के लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर सहमत हो रहे हैं।
      आज हम सब अपनी संस्कृति एवं परम्पराओं की अपनी हठधर्मिता के माध्यम से हत्या किए जा रहे हैं जिसकी निष्पत्ति आगे के समय में अपने को न पहचान पाने के रुप में होगी क्योंकि सभ्यता एवं संस्कृति का विकास एक व्यक्ति नहीं करता बल्कि यह दीर्घकालीन सतत प्रवाह होने वाली एक लम्बी प्रक्रिया होती है। किन्तु लगातार हमारा अपने क्षणिक मिथ्या सुख की प्राप्ति एवं आडम्बरपूर्ण दिखावे की वजह से मूलस्वरुप को भूलते जाना भविष्य में खतरे की घण्टी ही है। क्योंकि जिस देश के नागरिकों ने अपनी सभ्यताओं की जड़ों को काटा है,उनका नामोनिशान नहीं रह गया है।
रोम और यूनान रूपी देश जिनका केवल अब नाम रह गया है वे इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। आज हमारे घरों से सामान्य जीवनशैली के मूल सिध्दांतों में विशेष महत्व रखने वाले तुलसी का पौधा, त्रयकालिक भजन संध्या एवं बड़े-बुजुर्गों के मुखारविंद से सुनी जाने वाली पौराणिक एवं ऐतिहासिक कहानियां सुनने को नहीं मिलती जिनके सुनने से बच्चे में बचपन से शौर्य एवं अपनी संस्कृति के प्रति जिज्ञासु होने की प्रवृत्ति के साथ-साथ चारित्रिक एवं मानसिक श्रेष्ठता की भावना पुष्ट होती थी वर्तमान में इसका स्थान मोबाइल फोन में मनोरंजन वीडियो, कार्टून एवं फिल्मी गानों ने ले लिया है।
वर्तमान की आवश्यकता यही है कि जीजाबाई जैसी महान माँ हो जिससे प्रत्येक घर में वीर शिवाजी जैसा पुत्र हो जो अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए अपने जीवन को समर्पित कर सके। हमारे पास अभी भी समय है कि इस पर हम सभी विचार-विमर्श करें एवं षड्यंत्रपूर्वक हमारे दृष्टिकोणों में घर कर गई हीनता एवं इतिहास के विकृतस्वरुप के कारण अपराधबोध की भावना से ऊपर उठकर स्वचिन्तन कर भारत के गौरव को विश्वपटल पर पुनर्स्थापित करने के लिए प्रतिबध्दता व्यक्त करें।

रेशु वर्मा

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