वेब वार्ता (न्यूज एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
फिर रुलाने आ गई हैं , कम्मो को सर्दियां।
आईना दिखाने आ गई हैं, कम्मो को सर्दियां।।
लकड़ियां गिली पड़ी , गैस की कीमत बढ़ी।
फिर सताने आ गई हैं , कम्मो को सर्दियां।।
महंगी हो गई है दवाई, भरतार की उसके।
फिर डराने आ गई हैं लो, कम्मो को सर्दियां।।
गुदड़ी फटी,ठंडक बढ़ी, कंपकंपी छूटने लगी।
लो थरथरथराने आ गई हैं, कम्मो को सर्दियां।।
कमजार्फ बर्फ सी हो गई है, हवा भी आजकल।
अलाव सी जलाने आ गई हैं, कम्मो को सर्दियां।।
रोटियां मांगते हैं बादल , उसके आठ दस बच्चे।
भाव आटे का बताने आ गई हैं, कम्मो को सर्दियां।।
ढूंढिएगा हर शहर में ,कम्मो मिलेंगी आजकल।
कम्मो से मिलाने आ गई हैं ,कम्मो को सर्दियां।।
घनश्याम ‘बादल’