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विदेशी धर्मान्तरित अनुसूचित जाति/ जनजातियों को दो आरक्षण स्वीकार नहीं : विजय कुमार तिवारी राष्ट्रीय प्रवक्ता, विहिप

वेब वार्ता (न्यूज़ एजेंसी)/ अजय कुमार वर्मा
लखनऊ 21 अक्टूबर। आज एक प्रेस वार्ता के दौरान विश्व हिन्दू परिषद् के राष्ट्रीय प्रवक्ता विजय कुमार तिवारी ने कहा कि ईसाई व मुस्लिम धर्म में अनुसूचित जाति/ जनजातियों के मतांतरण के बाद अनुसूचित जाति/ जनजातियों को दो दो आरक्षण स्वीकार नहीं है, क्यूंकि धर्मान्तरण के पश्चात् वह ईसाई व मुस्लिम हो जाते है न कि भारतीय हिन्दू जिसे अनुसूचित जाति/ जनजाति का आरक्षण पहले से ही प्राप्त है।
दुर्भाग्यवश हिंदू समाज में SC/ST वर्ग को सामाजिक, शैक्षणिक व आर्थिक आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता रहा है, इसलिए हिंदू समाज का यह भाग सामाजिक शैक्षणिक व आर्थिक रूप से पिछड़ा रहा है। 1935 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी के मध्य पुणे में हुई एक वार्ता के अनुसार इन वर्गों को आरक्षण दिए जाने पर एक व्यापक सहमति बनी थी तथा धर्म के आधार पर पृथक निर्वाचन को राष्ट्र विरोधी घोषित किया गया था। 1936 में ही ईसाई मिशनरी व मुस्लिम नेताओं ने ईसाई व मुस्लिम पंथ में मतांतरित SC/ST वर्ग के लोगों को भी आरक्षण की मांग उठाई थी, जिसे डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी ने तार्किकता के साथ नकार दिया था और बाद में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी ने भी इस दोहरे आरक्षण कि मांग को नकार दिया था। संविधान सभा में भी जब अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण की मांग की गई तब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने मत आंतरिक अनुसूचित जाति के लोगों को आरक्षण की मांग को ठुकराते हुए इसे अनुचित सिद्ध किया था। 1950 में एक संवैधानिक आदेश जारी कर यह स्पष्ट कर दिया था कि हिंदू अनुसूचित जाति को आरक्षण सुविधा मिलेगी। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, देवगौड़ा मनमोहन सिंह ने इस मांग को स्वीकार करने का प्रयास किया, परंतु राष्ट्रव्यापी प्रचंड विरोध के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा। 2005 में सच्चर कमेटी व 2009 में रंगनाथ कमेटी ने इस पक्ष में कुछ अनुशंसा की थी, परंतु अपने अंतर्विरोध व गलत कार्य विधि के कारण वे दोनों विवादित बन गए और इनको क्रियान्वयन नहीं किया जा सका।

मतांतरित अनुसूचित जाति आरक्षण व न्यायपालिका :
ईसाई मिशनरी इस अनुचित मांग के लिए केवल सड़क और संसद में ही नहीं न्यायपालिका में भी निरंतर सक्रिय रहे हैं,परंतु न्यायपालिका ने भी इसको हर बार अतार्किक व असंवैधानिक बताकर ठुकरा दिया है। 30/9/1985 को सुसाइ व अन्य विरुद्ध भारत सरकार के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिया था की संविधान आदेश 1950 और इस में किए गए संशोधन संविधान सम्मत है और हिंदू सिख बौद्ध अनुसूचित जाति के अलावा किसी को भी यह आरक्षण नहीं दिया जा सकता। आरसी पौडयाल, सोमनाथ पौडयाल, नंदू थापा ,रूपराज राय आदि मामलों में संविधान आदेश 1950 के प्रावधानों को उचित व न्याय संगत माना गया।

ईसाई इस्लाम पंथ में मतांतरित अनुसूचित जातियों को आरक्षण के दुष्परिणाम
भारत में तेजी से मतान्तरण बढ़ेगा क्योंकि प्रतिबंधित पीएफआई सहित कई संगठन हैं जो अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र व सहायता से ईसाइयत व इस्लाम में धर्मांतरण के प्रयास करते रहते हैं। इनके यह षड्यंत्र कई बार उजागर हो चुके हैं। ईसाई संगठन स्वयं स्वीकार करते हैं कि भारत की आबादी का 4% छद्म इसाई है जो आरक्षण की सुविधा छीने जाने के डर से अपने आप को ईसाई घोषित नहीं करते। यह सुविधा मिलते ही वे अपने आप को ईसाई घोषित करेंगे।
      श्री तिवारी ने कहा कि अब समय आ गया है कि मतांतरित अनुसूचित जातियों को आरक्षण दिलाने वाले सभी षड्यंत्र को पूर्ण रूप से रोका जाए, और मतांतरित अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण पर रोक लगाई जाए। यह दोनों प्रयास राष्ट्रहित में हैं, और देश की सामाजिक ताने-बाने और ढांचे को सुरक्षित रखने के लिए भी आवश्यक है।

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