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घर की नीव बहुएं

वेबवार्ता (न्यूज़ एजेंसी)/ रेशु राज सोनी
लखनऊ। घर को स्वर्ग बनाने के लिये आवश्यक है आपस में प्रेम, स्नेह, आत्मीयता, एक दूसरे को समझने की भावना,कर्तव्य परायणता ये सब आत्म गुणो से घर का गुलदस्ता सजा रहेंगा तो दुनियाँ की कोई ताकत नहीं हमारे घर को नर्क बना दे।
दीपा और नीता दोनों जेठानी-देवरानी। दीपा नौकरी करती थी और नीता घर संभालती थी। भरा-पूरा परिवार था, सास-ससुर, दोनों के दो बच्चे कुल 10 लोगों का परिवार। कई सालों बाद दोनों की बुआ सास कुछ दिन अपने भाई के पास रहने आई। सुबह उठते ही बुआ जी ने देखा दीपा जल्दी-जल्दी अपने काम निपटा रही थी। नीता ने सब का नाश्ता, टिफिन बनाया जिसे दीपा ने सब को परोसा, टिफिन पैक किया और चली गई ऑफिस। नीता ने फिर दोपहर का खाना बनाया और बैठ गयी थोड़ा सास और बुआ सास के पास।
बुआ जी से रहा नहीं गया बोली “छोटी बहू तेरी जेठानी तो अच्छा हुकुम चलाती है तुझ पर, सुबह से देख रही हूं रसोई घर में तू लगी है और वो महारानी दिखावा करने के लिए सबको नाश्ता परोस रही थी जैसे उसी ने बनाया हो।” नीता और सास ने एक दूसरे को देखा, नीता बोली “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है बुआ जी।”
बुआ जी बोली “तू भोली है, पर मैं सब समझती हूं।”
नीता से अब रहा नहीं गया और बोली “बुआ जी आपको दीपा दीदी का बाकी सबको नाश्ता परोसना दिखा, शायद ये नहीं दिखा कि उन्होंने मुझे भी सबके साथ नाश्ता करवाया। मुझे डांट कर पहले चाय पिलाई, नहीं तो सबको खिलाकर और टिफिन पैक करने में मेरा नाश्ता तो ठंडा हो चुका रहता या मैं खाती ही नहीं। दीदी सुबह उठकर मंदिर की सफाई करके फूल सजाकर रखती हैं तो मम्मी जी का पूजा करने में अच्छा लगता है। मैं तो नहा कर आते ही रसोई में घुस जाती हूं। शाम को आते हुए दीदी सब्जियां भी लेकर आती हैं क्योंकि आपके भतीजों को रात लेट हो जाती है, तब ताजी सब्जियां नहीं मिलती। ऑफिस में कितनी मेहनत करनी पड़ती है, फिर ऑफिस में काम करके आकर रात को खाना बनाने में मेरी मदद करती हैं। वो मेरी जेठानी नहीं मेरी बड़ी बहन हैं, मैं नहीं समझूंगी तो कौन समझेगा?”
बुआ जी चुप हो गई। शाम को दीपा सब्जी की थैली नीता को पकड़ाते हुए बोली “इसमें तुम्हारी फेवरेट लेखक की किताब है निकाल लेना।”
नीता खुश हो गई और बोली “थैंक्स दीदी।” नीता सब्जी की थैली किचन में रखी और किताब रखने अपने कमरे में चली गई। बुआ जी ने दीपा को आवाज दी “बड़ी बहू, यहां आना।”
दीपा बोली “जी बुआ जी?”
बुआ जी बोली “तुम इतनी मेहनत करके कमाती हो और ऐसे फालतू किताबों में पैसे व्यर्थ करती हो, वो भी अपनी देवरानी के लिए। वो तो वैसे भी घर में करती ही क्या है? तुम दिन भर मेहनत करती हो और वो घर पर आराम।”
दीपा मुस्कुराई बोली “आराम? नीता को तो जबरदस्ती आराम करवाना पड़ता है। सुबह से बेचारी लगी रहती है किचन में सबकी अलग-अलग पसंद, चार बच्चों का टिफिन, सब बनाती है वो भी प्यार से। सुबह की चाय पीने का भी सुध नहीं रहता उसे, दोपहर को जब बच्चे आते हैं फिर उनका खाना, उनकी पढ़ाई सब वही देखती है। वो है इसलिए मुझे ऑफिस में बच्चों की चिंता नहीं रहती। मैं अपना पूरा ध्यान ऑफिस में लगा पाती हूं। कुछ दिन पहले ही प्रमोशन मिला है।
मम्मी पापा की दवाई कब खत्म हुई, कब लानी है उसे पता होता है। रिश्तेदारों के यहां कब फंक्शन है क्या देना है सब ध्यान रहता है उसे। घर संभालना कोई छोटी बात नहीं है। मेहमानों की आवभगत बिना किसी शिकायत के करती है। उसे बस पढ़ने का शौक है, फिर मैं अपनी छोटी बहन की छोटी सी इच्छा पूरी नहीं करुंगी तो कौन करेगा?” बुआ जी की बोलती फिर बंद हो गई
दीपा वहां से उठ कर चली गई। ये सारी बात सास पूजा करते हुए सुन रही थी। बुआ जी के पास आकर बोली “जीजी ये दोनों देवरानी जेठानी सगी बहन जैसी हैं और एक दूसरे का अधूरापन पूरा करती हैं। मेरे घर की मजबूत नींव है ये दोनों, जिसे हिलाना नामुमकिन है। ऐसी बातें तो कई लोगों ने दोनों को पढ़ाना चाही, पर मजाल है दोनों ने सामने वाले की बोलती बंद ना की हो?” और सास मुस्कुरा दी। बुआ जी की बोलती अब पूरी तरह बंद हैं।

लेखिका : रेशु राज सोनी

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